उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय का दसवांं दीक्षांत समारोह
हरिद्वार। उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि हर व्यक्ति को अपने अतीत की प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी परंपरा का सम्मान करें। राज्यपाल ने उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के दसवें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर युवाओं का आह्वान किया और कहा कि वे अपनी परंपराओं का संरक्षण करते हुए देश को समृद्ध, शिक्षित और दुनिया का श्रेष्ठ देश बनाने के अभियान में कटिबद्ध हैं।
महामहिम ने कहा कि हर व्यक्ति को अपने अतीत की प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी परंपरा का सम्मान करें। उन्होंने कहा कि संस्कृत तथा प्राचीन विद्याओं के विकास में बाधा बनने वालों के विरुद्ध कार्रवाई भी होगी। क्योंकि भारत की प्राचीन विद्या संस्कृत भाषा में ही मूल रुप से निहित है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि और उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में उन्होंने प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को पदक और शोधार्थियों को शोध उपाधि प्रदान की। उन्होंने कहा कि आज पारम्परिक विद्या के अध्यताओं को टेक्नोलॉजी का अच्छा ज्ञान आवश्यक हो गया है। इससे विकसित भारत की परिकल्पना और अधिक साकार हो सकेगी।
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इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास बरखेड़ी ने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालयों को भारतीय ज्ञान प्रणाली के उल्लेखनीय केंद्रों के रूप में विकसित तथा संबद्र्धित किया जाना चाहिए। इससे नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को साकार कर आगामी वर्षों में भारत को फिर से विश्व गुरु के रूप में स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने उत्तराखण्ड को देवस्थली बताते हुए कहा कि यहां के अनुपम ज्ञान विज्ञान को विश्व के सामने उजागर करना समय की मांग है। उन्होंने उत्तराखंड को ज्ञान की भूमि बताया और कहा कि यहां के छात्रों और शिक्षकों को अपनी मूल परंपरा का संरक्षण करते हुए अंतरविषयी ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए। भारतीय ज्ञान परंपरा में विज्ञान, आयुर्वेद, कृषि तथा प्रबंधन विषय से जुड़े अनेक उल्लेखनीय सूत्र और प्रयोग मिलते हैं, उन्हें जन-जन तक पहुंचाया जाना चाहिए।
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो दिनेश चंद्र शास्त्री ने अपने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों तथा भविष्योन्मुखी योजना की चर्चा की और नैक निरीक्षण की तैयारी के लिए कमर कसने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि न्यायशास्त्र, वैशेषिक, धर्मशास्त्र मीमांसा तथा पुराणों का विशेष अध्ययन केन्द्र भी बनना चाहिए।
पूर्व कुलसचिव दिनेश कुमार अवस्थी दीक्षांत समारोह का धन्यवाद ज्ञापन किया और संचालन डॉ शैलेश तिवारी ने किया। इस अवसर पर 15 टॉपर्स को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। इस अवसर पर इसी विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली नई शोध पत्रिका देवभूमि जर्नल आफ मल्टीडिसीप्लिनरी रिसर्च नाम से ई-शोध पत्रिका का विमोचन भी किया गया।
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