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नए दौर के लोकतंत्र को मजबूत करेगी-ई लर्निंग

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सुमित सौरभ (डायरेक्टर, डिजाइन सर्कल)

लोकतांत्रिक मूल्यों को सहेजने में आमजन की सहभागिता और जागरुकता बेहद जरुरी है, डिजिटल लर्निग के माध्यम से जनजागरुकता बढाकर ऐसी समस्याओं पर न केवल काबू पाया जा सकता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गो को एक नई दिशा दी जा सकती है।  शिक्षा  क्षेत्र में ई-लर्निंग का प्रयोग लंबे अरसे से चला आ रहा है, लेकिन वर्तमान दौर में प्राइमरी  शिक्षा  में भी इसका प्रभाव बढ़ा है। प्राइमरी शिक्षा के कंटेट से लैस एप्स की मांग तेजी से बढ़ रही है, बाईजूस लर्निंग एप इसका एक अच्छा उदाहरण है।

बडे़ बदलावों और नए दौर की चुनौतियों के लिए तकनीकों की भूमिका अभूतपूर्व तरीके से प्रभावी हो रही है। आज का समाज तेजी से सोशल मीडिया, आटोमेशन और ग्लोबलाइजेशन से जुड़ रहा है, इससे नई चुनौतियां भी खडी हो रही है। डेमोग्राफी और कल्चर में बदलाव की प्रकिया में पीछे रह लोगों के लिए जागरुकता समय की सबसे बडी मांग है। ऐसे में जरूरी है लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने और आम जनमानस को जागरूक बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रशिक्षण से आम लोगों को भी जोड़ा जाए, डिजिटलीकरण ने एजूकेशन और बिजनेस को जो उचाई दी है, उससे निश्चित ही कई गंभीर चुनौतियों का हल निकालना पहले से काफी आसान हो चुका है। गौर करने वाली बात है कि डिजिटल लर्निंग की सीमाए महज शिक्षा और व्यापार जगत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक पैमाने पर जागरूकता लाने में सक्षम है।

हाल के वर्षो में बच्चों को पढ़ाने के लिए टेक्नोलाॅजी का प्रयोग किया जा रहा है। इस परिवर्तन को लेकर कई अभिभावकों में यह चिंता है कि कहीं टेक्नोलाॅजी के बढ़ते प्रयोग का उनके बच्चों पर प्रतिकुल प्रभाव न पड़े, लेकिन जेनरेषन गैप को ध्यान में रखते हुए यह भी समझना होगा की आने वाली पीढ़ी के सोचने एवं समझने का तरीका काफी अलग है। आज षिक्षक कक्षा में कहानी सुनने के बजाय बच्चों को कहानी का वीडियो दिखते है, जो बच्चों को कथ्य से जोड़ने में अधिक मददगार साबित हो रहा है।

जरूरी है टेक्नोलॉजी और सिस्टम की सहभागिता

मानव मस्तिष्क में एक विचित्रता होती है, जो उसे नया जानने और समझने के तौर तरीकों को प्रभावित करती है, तकनीकी निर्भरता के इस दौर में इमोशन और मानसिक आलस्य एक बडी बाधा बन रहा है। एकाग्रता की क्षमता लगातार प्रभावित हो रही है। लंबी समयावधि तक सीखने की क्षमता प्रभावित हो रही है, यही वजह है लर्नर का एकाग्र रखने और बेझिल होने से बचाने के लिए ई-लर्निंग कंटेंट को बेहतर से बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है। जब हम सामाजिक स्तर पर डिजिटल लर्निंग के प्रसार की बात करते है तो कंटेंट को लेकर कहीं अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है।

शिक्षा का डिजिटलीकरण

डिजिटलीकरण कहीं न कहीं बच्चों के बीच के अंतर को खत्म कर रहा है। प्रत्येक बच्चे के सीखने व समझने की क्षमता में अंतर होता है और डिजिटलीकरण इस अंतर को कम करने में सहायक है। डिजिटल उपकरणों के माध्यम से शिक्षक बच्चों को व्यक्तिगत स्तर पर अलग टास्क देता है, उदाहरण के रूप में एक बच्चा जो कक्षा में बोलने में हिचकिचाता है, शिक्षक उसे घर जाकर एक कहानी पढकर उसे रिकाॅर्ड करने के लिए कहता है, जो कि बच्चे को प्रोत्साहित करता है एवं उसके सर्वागीण विकास में मदद करता है। डिजिटल कक्षाओं के माध्यम से एक ही पाठ्यक्रम, क्लास और वातावरण में पढ़ रहे बच्चों में उनकी आवश्यकताओं को समझते हुए उनके लिए आवश्यक सह शिक्षण जैसे ग्रुप स्टडी, विषेश कक्षाओं जैसी सुविधाओं का प्रबंधन करता है, हालांकि पारंपरिक शिक्षण व्यवस्था के भी अपने फायदे है, मगर एक प्रारूप सभी के लिए उचित हो ऐसा जरूरी नहीं। शिक्षा का डिजिटलीकरण शिक्षकों को पाठन प्रक्रिया में सहायता प्रदान करता है। ई-लर्निंग एवं डिजिटलीकरण हर छात्र को उसकी आवश्यकता, क्षमता, रुचि एवं समझ के अनुसार आगे बढ़ने ओर शिक्षण व्यवस्था को बेहतर ढंग से समझने में सहायक है, जिस प्रकार टेक्नोलॉजी का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है, शिक्षा में इसका प्रयोग इसे बेहतर दिषा ही प्रदान करेगा।

ई-लर्निंग कितनी फायदेमंद

प्राइमरी शिक्षा में ई-लर्निंग के प्रयोग के अपने फायदे एवं नुक्सान है। पाठ्य सामग्री की सरल एवं तुरंत उपलब्धता इसका प्रमुख लाभ है, जिसने पाठ्य सामग्री के वितरण को आसान बना दिया है तथा इस पर होने वाले व्यय को भी कम किया है। ई-लर्निंग के माध्यम से सीखने की प्रकिया के विकल्प में बढोतरी हुई है और विभिन्न गतिविधियों से षिक्षण में जो विविधता आई है, जिसके प्रयोग से प्रत्येक छात्र में शिक्षण के प्रति संतुश्टि बढी है एवं दबाव घटा है, हालांकि प्राइमरी शिक्षा में ई-लर्निंग के प्रयोग से शिक्षण व्यवस्था में लागत बढ़ी है, क्योंकि इसके लिए इंफ्रास्टक्चर की आवश्यकता होती है एवं शिक्षकों एवं छात्रों को कंप्यूटर एवं गैजेट्स की जानकारी होनी आवश्यक है, जिसके कारण शिक्षा का यह माॅडल आर्थिक रुप से थोडा माहंगा साबित होता है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए इस प्रारूप की उपलब्धता अभी इतनी सरल नहीं है।

ई-लर्निंग के प्रति बढ़ता रुझान

ई-लर्निंग पारंपरिक शिक्षण की अपेक्षा काफी आकर्शक है, स्लामेटो नाम के एक इंडोनेशियन रिसर्चर द्वारा प्राइमरी शिक्षा पर ई-लर्निंग के प्रभाव पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 90 प्रतिशत छात्रों ने माना कि ई-लर्निंग उन्हें पाठ्य सामग्री के साथ-साथ पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है, 78 प्रतिशत छात्रों ने माना कि ई-लर्निंग उन्हें विषेशज्ञों एवं शिक्षकों से जुड़ने में मदद करता है, जबकि 72 प्रतिशत छात्रों ने यह माना कि ई-लर्निंग के कारण सीखनें की प्रकिया में उनका योगदान एवं रुचि बढ़ी है, स्लामेटो अपने रिसर्च में इस निश्कर्श पर पहुंचा है कि छात्रों का ई-लर्निंग के प्रति भारी रुझान का कारण है कि प्रत्येक छात्र अपनी प्रतिक्रिया एवं व्यक्तिगत स्तर पर सीखने की क्षमता को लेकर काफी सचेत है।

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