By Suresh Agrawal, Kesinga, Odisha
कालाहाण्डी की गिनती प्रदेश में सर्वाधिक कपास उत्पादक ज़िले के रूप में होती है और जिस पर भी उच्च गुणवत्ता वाले रेशे की कपास होने के कारण यहां के माल की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में काफी मांग है। बावज़ूद इसके कपास की जीनिंग एवं बेलिंग प्रक्रिया द्वारा तो यहाँ निजी संस्थाएं काफी मुनाफ़ा कमा रही हैं, परन्तु कताई अथवा स्पीनिंग मिल लगा लोगों को अधिक रोज़गार उपलब्ध होने पर सरकारी अथवा निजी कोई भी संस्था ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझती।
सरकार द्वारा कोई तीन दशक पूर्व पन्द्रह करोड़ की लागत से कोणार्क स्पीनिंग मिल के नाम पर जो परियोजना शुरू की गयी थी, वह खण्डहर में तब्दील हो चुकी है, जिसके चलते जहां एक ओर किसानों को लाभ से वंचित रह जाना पड़ता है, वहीं उद्योग न होने के कारण बेरोज़गारी की समस्या भी बढ़ रही है। स्थिति कुछ ऐसी बन पड़ी है कि जो श्रमिक कोरोना के चलते गुजरात, तमिलनाडु आदि प्रदेशों से घर लौटे थे, काम-धंधा उपलब्ध न होने के कारण पुनः उन्हीं राज्यों का रुख करने विवश हैं। आलम यह है कि सम्बद्ध राज्यों के उद्योग स्वयं अपने यहां से गाड़ियां भेज कर मज़दूरों को वापस बुला रहे हैं। कुछ दिन पूर्व श्रमिकों को तमिलनाडु ले जा रही एक बस के पास्टीकुड़ी चट्टान के समीप दुर्घटनाग्रस्त होना इस बात का प्रमाण है।

ज्ञातव्य है कि ज़िले में सालाना पाँच-छह लाख क्विंटल अच्छी गुणवत्ता वाली कपास का उत्पादन होता है, जिसमें से बिनौले निकालने (जीनिंग) एवं फिर परिष्कृत कपास की गाँठें बनाने की प्रक्रिया (बेलिंग) हेतु सरकारी कोणार्क जीनिंग सहित कुल पांच मिलें स्थापित हो चुकी हैं। कपास की गाँठों की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में खासी मांग है, परन्तु किसानों को अपनी उपज का अच्छा दाम नहीं मिलता। सरकारी अथवा निजी किसी भी क्षेत्र में स्पीनिंग मिल लगने पर रोज़गार के अधिक अवसर प्राप्त होंगे एवं किसानों को भी कपास का समुचित मूल्य प्राप्त होगा। जानकारों के अनुसार जीनिंग के साथ-साथ स्पीनिंग मिल लगने पर रोज़गार के अवसरों में कई गुना वृध्दि होगी। तब शायद इससे जुड़ी अनेक अन्य सहयोगी इकाइयाँ भी अस्तित्व में आ जाएंगी।
अहम बात तो यह है कि यहां खेतों के पास ही बिजली, पानी, परिवहन जैसी तमाम मूलभूत सुविधाएं पहले ही से मौज़ूद हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 26 की सर्वोच्च सुविधाओं के अलावा छत्तीसगढ़ राज्य का कारोबारी शहर रायपुर यहां से महज़ 220 किलोमीटर की दूरी पर है, जब कि आंध्रप्रदेश का बंदरगाह शहर विशाखापटनम भी केवल 300 किलोमीटर दूर है। केसिंगा से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित उतकेला विमानतल भी हवाई सेवाओं के लिए बन कर तैयार होने वाला है। बावज़ूद इसके सरकार द्वारा इस ओर ध्यान न दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण समझा जा रहा है। सरकार अथवा उसके चुने हुये जनप्रतिनिधि उपलब्ध तमाम संसाधनों का इस्तेमाल करना क्यों कर उचित नहीं समझते, यह एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है।

