देश भर के भारतीय संस्कृति की वाहक हिंदी व भारतीय भाषा, बोलियों को उनका हक दिलाने के लिए भाषाई अस्मिता के संघर्ष के साथी व समर्थकों को प्रणाम..कोरोना के खिलाफ जंग के बीच राष्ट्र भाषा हिंदी दिवस..मनाया जा रहा है। दिवस का झुनझुना देकर अंग्रेजीदां लोगों ने सोचा था कि हम कुछ दशक में ऐसे हालत कि नई पीढ़ी..अपनी संस्कृति से अलग गुलाम मानसिकता..लेकिन वह भूल गए कि यह सनातन संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाओं की भूमि है। हमारे खून में महान संस्कृति दौड़ती है। आज हिंदी व भारतीय भाषाएं पूरे विश्व में जहाँ जहाँ भारतीय जाते हैं उनके साथ महक रही है। हिंदी रोजगार की भाषा, व्यवसायिक भाषा, बड़े समाज में पहुंच की मजबूरी और इसको रोक पाना काले अंग्रेजों के बस में नहीं है।
फिर पिछले तीन दशक में देश की राजनीति में भारतीयता को मजबूती और पुरानी अंग्रेजियत का असर कम हुआ। 1990 से 1998 तक में राजनीति में भारतीय संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाओं के लिए जब भाषा आंदोलन में पहली बार सभी पूरा विपक्ष व पक्ष के भी भारतीयता समर्थक आगे आए तो परिवर्तन शुरू हुआ। तब से बढ़ते बढ़ते आज भारतीय संस्कृति की बात कहते हैं तो पहले जैसे ताने नहीं सुनाई देते, बल्कि आज भारतीय संस्कृति का बोलबाला..आपका यह अपना आज तब के कुछ हालात को..आपसे..साझा..तब भारतीय संस्कृति की बात कहने वाले अपनों को अंग्रेजीदां संस्कृति विरोधी के साथ मिलकर हतोत्साहित करते थे। तब हमारे आंदोलन में भी ऐसी ताक़तें तोड़ने के लिए प्रलोभन, धन बल हर हथकंडा अपनाते..हमारे बीच ही भटकाव का प्रयास..उस समय हमारे पास संसाधन कम..लेकिन हमारी मुठ्ठी भर की टीम ने संस्कृति प्रेमियों के स्नेह के बल पर तिहाड़ जेल हो या अन्य प्रताड़ना न कभी झुके न डिगे।
इसका असर यह कि राजनीतिक दलों के भीतर भी भारतीयता आगे..इस बयार का असर आज भारतीय संस्कृति, लेकिन अंग्रेजी की अनिवार्यता को हर स्तर पर समाप्त करने के सवाल पर अभी भी मात्र वैचारिक सहमति से आगे कार्य नहीं हो रहा है, आज वर्षो बाद मोदी सरकार को यह साहस भी ..संसदीय संकल्प पर कार्रवाई और देश को एक भारतीय भाषा राष्ट्र भाषा देने पर पूर्ण अमल करना चाहिए। राजभाषा के बजाय हिंदी को राष्ट्र भाषा..प्राथमिक शिक्षा में भारतीय भाषा का निर्णय की पहल स्वागत योग्य है, अभी वह किस रूप मे लागू.. इसका इंतजार..भारतीय संस्कृति के दम पर सत्ता में आए लोग अच्छी तरह समझ रहे होंगे कि भारतीय भाषाएं जब तक हैं तभी तक भारतीय संस्कृति..इस सवाल पर अब अधिक देरी उचित नहीं।
आज हिंदी दिवस.. भारतीय संस्कृति की विचार धारा के मोदी सरकार से आग्रह कि अंग्रेजियत के सभी षडयंत्र भी खत्म करें। देरी पर संघर्ष तय..आज एक अच्छी बात बीते दिनों दिल्ली में नजर आई कि हिंदी व भारतीय भाषा संस्कृति के विरोधियों को सह देने वाले पस्त है। अब भारतीय संस्कृति के लिए कार्य करने वालों को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। कोरोना काल में दिल्ली में इस बार अभी कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं किया जा पा रहा है। कोरोना की दवा आने तक सावधानी ही बचाव. कोरोना के खिलाफ जंग में कामयाब तो अब निर्णायक संघर्ष होगा। सभी अपनों से आग्रह स्वतः संघर्ष के सिपाही के रूप में अपने स्तर पर भी संघर्ष करें। क्योंकि इस संघर्ष में प्रत्येक देश भक्त सिपाही है आज के दिन जल्द पुनः निर्णायक संघर्ष के संकल्प के साथ प्रणाम। सभी अपनों से पुनः आग्रह कोरोना से बचाव के लिए सावधानी जरूरी।
रवींद्र सिंह धामी की फेसबुक वाल से, धामी अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के राष्ट्रीय सचिव हैं।