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लोक से कला को छीन बनाया गया शास्त्रीयः रणेंद्र

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दून लाइब्रेरी में प्रो. लाल बहादुर वर्मा स्मृति व्याख्यान
लोक-शास्त्र का द्वंद्व और वर्चस्ववादी संस्कृति विषय पर व्याख्यान
देहरादून। लोक से कलारूपों को छीन शास्त्रीय बना दिया गया । फिर उसे लोगों से दूर कर दिया गया। रविवार को दून लाइब्रेरी एवं रिसर्च सेंटर में आयोजित प्रो. लाल बहादुर वर्मा स्मृति व्याख्यान की तीसरी श्रृखंला के तहत मुख्य वक्ता कथाकार व उपन्यासकार रणेंद्र ने ‘लोक-शास्त्र का द्वंद्व और वर्चस्ववादी संस्कृति’ विषय पर व्याख्यान दिया। रणेंद्र ने कहा कि शास्त्रीय शब्दावली को खारिज करने की जरूरत है क्योंकि यह द्वैध पैदा करती है। कुलीन व आम का विभाजन पैदा करती है। श्रमजीवियों की लोक कलाओं पर ही अभिजात कब्जा कर उन्हें शास्त्रीय रूप देता है और लोक से अलग कर देता है। शास्त्रीयता को आधुनिकता से चिढ़ है ऐसे में वह नाट्यशास्र्् या फिर वेद में अपना मूल खोजती है जबकि उसका मूल लोक जीवन है।

वह यह भी नहीं मानती कि उसमें बदलाव हो रहा है जैसे अलाउद्दीन खिलजी गोपाल राय को लाया अमीर खुसरो से मुलाकात कराई तो पारसी प्रभाव से ध्रुपद से खय़ाल पैदा हुआ। लोक को दरबार पहुंचाकर शास्त्रीय बना दिया जाता है। हमें कला के आम जन के बीच ही मूल स्रोतों को पहचानने की जरूरत है। इतिहास बोध की ओर से आयोजित इस कार्य़क्रम में प्रो. लाल बहादुर वर्मा के डॉ. चंद्र भूषण अंकुर द्वारा संपादित गोरखपुर के समय के संस्मरणों के संकलन का लोकार्पण भी किया गया। प्रवाह सांस्कृतिक टीम के सदस्यों ने शैलेंद्र का जनगीत कवि किसका है कविता किसकी और दिनेश कुमार शुक्ल का गीत जाग मेरे मन मछंदर की संगीतमय प्रस्तुति की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफेसर सदानंद शाही ने प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए और कहा कि वह इतिहास बोध ही नहीं इतिहास विवेक को जागृत करने वाले व्यक्ति थे। विषमता के प्रति आलोचनात्मक रवैया ही इतिहास का विवेक जगाता है। कार्यक्रम का संचालन दिगंबर और कैलाश नौडियाल ने किया। इसके पहले कथाकार अरुण असफल ने मुख्य वक्ता उपन्यासकार रणेंद्र व कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही का विस्तृत परिचय दिया। कायर्क्रम मेंहाल में दिवंगत साहित्यकार सुभाष पंत, विजय गौड़ और विज्ञान कार्यकर्ता गजेंद्र बहुगुणा को भी श्रद्धांजलि दी गई। इस मौके कवि राजेश सकलानी, कथाकार नवीन नैथानी, डॉ. जितेंद्र भारती, आशु वर्मा डॉ. आरपी सिंह, नरेश नौडियाल, प्रवीन समेत अनेक लोग मौजूद रहे।

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