अल्मोड़ा(जागेश्वर)। रंगों के त्यौहार होली का इंतजार हर किसी को रहता है। उत्तराखण्ड के पहाड़ी गॉव में रहने वाले लोगों को होली का बेसब्री से इंतजार रहता है। पहाड़ी गांवों में लगभग एक सप्ताह तक चलने वाली होली में चारों तरफ होली गीतों की धूम के साथ ही ढोल, दमाऊ व मजीरों की धमक व खनक सुनाई देती है।
सामूहिक रूप से मनाए जाने वाले होली उत्सव में प्रत्येक गांव के सभी लोग बढ़चढ़कर भाग लेते हैं। पर्वतीय क्षेत्र के दूर-दराज के गांवों में पहले होली को पुरुष प्रधान ही माना जाता था। अधिकतर गांवों में होली गायन, वादन में पुरुषों को ही देखा जाता था। लेकिन अब समय के साथ साथ महिलाएं भी होली गायन, वादन में बढ़चढ़कर भाग ले रही हैं।
एकादशी के दिन यानी 20 मार्च से प्रारंभ हुई इस बार गांव की खड़ी होली का 26 मार्च को समापन हो जाएगा। हालांकि मैदानी क्षेत्रों में इस बार 25 मार्च को होली मनाई गई, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में होली की छरड़ी 26 को मनाई जा रही है। इस बार गांवों में 7 दिन तक होली चली, जिसमें प्रत्येक गांव के सभी लोगों ने बढ़चढ़कर भाग लिया। गांवों में होली गीतों के साथ ही झोड़े, छपेली और पहाड़ी गीतों की भी धूम दिखी। प्रत्येक गांव में पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग टोलियां बनाकर होली गीत गाते और नाचते देखा गया। इस बार गांव की होली में महिलाओं की विशेष धूम रही। दूर दराज के गांवों में भी महिलाओं को होली की पोशाकों में गाते-नाचते देखा गया।
होली में छाई रही चमुवा की महिलाएं
धौलादेवी ब्लाक के चमुवा गांव की महिलाओं ने इस बार अपनी अलग टोली बनाकर घर घर जाकर होलियां खेली। सात दिन तक चले होली उत्सव में गांव की सभी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। महिलाओं ने होली गीतों के साथ ही भजन-कीर्तन और पहाड़ी गीतों में ठुमके लगाए। यही नहीं यहां की महिलाओं ने अपनी कला का शानदार प्रदर्शन करते हुए हंसी ठिठोली के लिए स्वांग और थ्येटर बनकर लोगों का मनोरंजन किया।
छा गया ओलियागांव की महिलाओं का छोलिया नृत्य
पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट क्षेत्र के ओलियागांव की महिलाओं ने जब होली में छोलिया नृतकों की पोशाक पहनकर छोलिया नृत्य किया तो उनका नृत्य देखकर हर कोई उनकी प्रशंसा करने लगा। देखते ही देखते कई लोगों ने उनके छोलिया नृत्य को अपने स्टेटस में लगा लिया। पहाड़ की एक अलग पहचान रखने वाला यहां के छोलिया नृत्य में खासतौर पर पुरुष ही भाग लेते हैं। लेकिन ओलियागांव की महिलाओं ने होली उत्सव में शानदार छोलिया नृत्य प्रस्तुत कर सभी का मन जीत लिया।
शहरों में भी गांव की होली के प्रशंसक
उत्तराखण्ड के गांवों में गाई जाने वाली होली के प्रशंसक शहरों में भी कम नहीं। गांव छोड़कर नौकरी या व्यवसाय के लिए शहरों में रह रहे लोग भी गांव की होली के खासे प्रशंसक हैं। सोशियल मीडिया के इस युग में वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम और फेसबुक के माध्यम से दूर शहरो में बैठे लोगों को भी गांव की होलियों का भरपूर आनंद लेते देखा गया। शहरों में बैठे लोग भले ही तन से शहरों में थे लेकिन उनका मन अपने अपने गांव की होलियों में ही टिका रहा।
छरड़ी और होली के भंडारे के साथ होता है होली का समापन
पहाड़ी गांवों में खेली जाने वाली होली का समापन छरड़ी के दिन गांव वालों को खुशहाली का आशीर्वाद देने के साथ होता है। इसे असीक भी कहा जाता है। इसके बाद सामूहिक रूप से प्रत्येक गांव में होली भंडारे का आयोजन किया जाता है और ईश्वर से गांव के लोगों की खुशहाली और उन्ïनति के लिए प्रार्थना की जाती है।