संस्कृत का कार्यालय स्तर पर अधिक से अधिक प्रयोग करने की आवश्यकता – प्रो. वरखेड़ी
Report ring Desk
नई दिल्ली। संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी की अध्यक्षता में आयोजित किए गए संस्कृत सप्ताह में एक दिवसीय “कार्यालयीय व्यवहारे संस्कृतप्रयोग:” कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में अध्यक्ष, विदयूत-विनियामक आयोग तथा पूर्व न्यायमूर्ति लखनऊ उच्च न्यायालय शबीहुल हसनैन, अध्यक्ष उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान डा वाचस्पति मिश्र ने सारस्वत अतिथि के रुप में कार्यशाला को संबोधित किया। इस कार्यक्रम में हिमाचल राज भवन के सचिव के प्रतिनिधि के रुप में आचार्य ओंकार चन्द ने भी अपनी बातें रखीं।
कुलपति प्रो. वरखेड़ी ने उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश में कार्यालय स्तर पर संस्कृत के महत्प की चर्चा करते हुए कहा कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में भी संस्कृत को कार्यालय स्तर पर अधिक से अधिक प्रयोग करने की आवश्यकता है, क्योंकि अपना विश्वविद्यालय संस्कृत के उन्नयन के लिए भारत सरकार का नोडल निकाय है। अत: इससे संस्कृत भाषा का यह उपक्रम देश व्यापी हो सकेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए आदेश की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि इसके लिए मित्रसम्मित भाव से मिल जुल कर आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि अपने विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी तथा कर्मचारी आपस में तय करें कि प्रत्येक मास कुछ संस्कृत भाषा में पत्र व्यवहार का श्रीगणेश करें। उनका यह भी मानना था कि नौकरी में तो प्रमोशन मिल ही जाती है लेकिन जीवन के प्रबंधन में उत्कर्ष लाने वाली दुनिया की एकमात्र संस्कृत भाषा को प्रयोग में लाए जाने की आवश्यकता है। इसको पढऩे से जीवनवृत्ति तथा जीवन मूल्य में संवर्धन सुनिश्चित होती है।
इस अवसर पर न्यायमूर्ति ने अपने व्याख्यान में कहा कि यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैंने भी इसी विश्वविद्यालय में नामांकन लेकर संस्कृत पढऩा, लिखना तथा बोलना सीखा है। वह भी कोविड से ग्रस्त होने के बाबजूद मैं ऑन लाईन परीक्षा देकर उत्तीर्ण हुआ। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आपके समक्ष इसलिए बोल रहा हूं कि आपको यह समझना चाहिए कि जब मैं सेवा निवृत्त होने के बाद भी संस्कृत सीख सकता हूं, तो आप लोग तो अभी युवा तथा कार्यरत हैं। अत: आप लोग अपने विश्वविद्यालय के प्रकल्पों में संस्कृत व्यवहार क्यों नहीं कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत की किताब सिर्फ़ किसी स्टॉल विशेष की नहीं होनी चाहिए, अपितु जैसे कोई एयर पोर्ट पर है, वहां पर सामान्य पुस्तक स्टॉल पर संस्कृत की भी ऐसी किताब हो जिसे आम पाठक भी ले सकें।
आचार्य वाचस्पति मिश्र ने संस्कृत भाषा के कार्यालय में प्रयोग की महत्ता पर प्रकाश डालते इनकी अर्थवत्ता की उपादेयता को सात सूत्रों के अन्तर्गत व्याख्यान दिया। आचार्य मिश्र ने संगणक तथा संस्कृत के महत्व को बताते कहा कि इन दोनों को लेकर बहुत ही निकट के संबंध हैं। अत: संस्कृत को कार्यालय स्तर पर प्रयोग करना और सहज होगा। उन्होंने विदेशी विद्वान सौस्सूअर का जिक्र करते यह भी कहा कि उन्हें अपनी पीएचडी की उपाधि संस्कृत के षष्ठी विभक्ति पर मिली थी। उनका मानना था कि संस्कृत से ही भारत का उद्घार होगा। उन्होंने अंग्रेजी़ भाषा पर संस्कृत के भाषा वैज्ञानिक प्रभाव पर भी विविध शब्दों को उद्धृत करते प्रकाश डाला। आचार्य मिश्र ने कहा कि बाबा साहेब ने भी संस्कृत को कार्यालय की भाषा बनाने की मांग की थी क्योंकि यह देश को जोड़ती है। अत: संस्कृत भाषा को कार्यालय के प्रयोग में लाने पर बल दिया जाना चाहिए। संस्कृत के महत्व के प्रसंग में उन्होंने महात्मा गांधी तथा सुभाष चन्द्र बोस, विवेकानन्द तथा दयानन्द सरस्वती का भी जिक्र किया और गांधी जी के विषय में कहा कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने भारत को संस्कृत पढ़ कर समझा है। हम इन महापुरुषों की चर्चा तो करते हैं लेकिन सामान्यत: संस्कृत की बात भूल जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के सचिव के प्रतिनिधि के रुप में पधारे आचार्य ओंकार चन्द जिन्हें राज भवन के सभी अधिकारियों तथा कर्मचारियों को संस्कृत सीखाने के लिए ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की सरकार ने 2018 में संस्कृत को राज भाषा तो घोषित कर दिया है । लेकिन क्रियान्वयन के पहले राजभवन ने यह निर्णय लिया है कि राज भवन से पहले इसकी शुरूआत होगी। संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रुप में सम्यक रुप से लागू करने के लिए भाषा एवं लोक संस्कृति विभाग में अनेक पदों को भी सृजित करने के लिए कैबिनेट ने निर्णय भी लिया है।