Report ring Desk
अल्मोड़ा। प्रत्येक वर्ष की तरह शनिवार को समूचे पहाड़ में हरेला पर्व धूमधाम से मनाया गया। सुबह से ही लोगों में आज हरेला त्यौहार मनाने का उत्साह देखा गया। सबसे पहले ईष्टदेवों को हरेला चढ़ाया गया, उसके बाद परंपरानुसार घर के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद देकर ‘जी रया, जागि रया, यो दिन य बार भेटैने रया…’ का आशीर्वचन देकर घर के अन्य सदस्यों को हरेला पूजा।
लोकपर्व हरेला को लेकर कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में खासा उत्साह दिखा। जो लोग घर से काम के सिलसिले में बाहर प्रदेशों में हैं उन्होंने भी हरेला पर्व को सोशल मीडिया के जरिए मनाया। लोगों ने फेसबुक, वाट्सअप पर हरेला पर्व की फोटो और वीडियो भेजकर एक-दूसरे को हरेला की बधाई और शुभकामनाएं दी।
हरेला को बरसात के सीजन का पहला त्योहार माना जाता है। इस अवसर पर कुल देवताओं की पूजा कर सुख-समृद्धि और हरियाली का आशीर्वाद मांगा गया। शिव उपासना का महापर्व हरेला पर्व काटने का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजे से 11:30 बजे तक था। श्रावण मास में शिव पूजा का विशेष महत्व है। इसके अनुसार जो व्यक्ति जीवन में श्रावण मास पर्यन्त शिव आराधना करते हैं या पार्थिव पूजन करते हैं उन्हें भगवान कुबेर से धन वैभव प्राप्त होता है। पूजन करने से समस्त रोग दूर होते हैं। यदि कोई पूरे माह शिव पूजन न कर सके तो वह रोज सुबह-शाम को ‘पंचाक्षर मंत्र ऊं नम: शिवाय’ का जाप करें। शिव तांडव स्रोत पाठ कर सकते हैं। शिव पुराण के अनुसार विद्यार्थियों को विद्या प्राप्ति के लिए शिव पूजन करना चाहिए।
आज से दस दिन पूर्व हरेला बोया जाता है। हरेला घर के भीतर टोकरी या किसी गमले में बता है हरेला में सात या नौ अनाजों को बोया जाता है। हरेला बोने से पहले मिट्टी को साफ करके सुखाया जाता है। उसके बाद गमले या टोकरी में तीन बार मुठ्ठी से मिट्टी डाती जाती है। टोकरी में एक बार मुठ्ठी से मिट्टी और उसके बाद नौ अनाजो की मुठ्ठी से डाला जाता है। अगर सात अनाजों का हरेला बनाया है तो सात बार मिट्टी और सात बार मिट्टी डाली जाती है। नौ दिन तक हरेला को अंधेरे में रखकर सुबह शाम पूजा करके उसमें पानी डाला जाता है। भैसियाछाना विकास खंड रीठागाड पट्टी की हेमा भट्ट ने विधि विधान से हरेला पावन पर्व की गुड़ाई के साथ-साथ पूजा-अर्चन की और परिवार के साथ धूमधाम से हरेला पर्व मनाया।