By Khajan Pandey
नवरात्रि में कन्या पूजन भारतीय परम्परा का हिस्सा रहा है। नौ दिन देवी मां के अलग-अलग स्वरूप को पूजने के बाद सप्तमी से नवमी के बीच नौ कन्याओं को घर पर बुलाकर पूजा जाता रहा है। एक मान्यता के अनुसार जम्मू स्थित कटरा के पास मां के परम भक्त श्रीधर जो कि निसंतान थे, के द्वारा कुंवारी कन्याओं को अपने घर पर बुलाकर पूजा की गई। माँ वैष्णो देवी भी उनके बीच बालरूप में आकर बैठ गयी। पूजा के बाद और सभी कन्याएं तो चली गई किन्तु मां वैष्णो देवी वहीं रह गयीं। उनके द्वारा श्रीधर को भंडारे का आयोजन की बात कही गई.। श्रीधर द्वारा उनकी बात मान भंडारे का आयोजन किया गया और कुछ वर्ष बाद उनको संतान की प्राप्ति हुई। पम्परागत तौर पर तब से ही घर पर देवी के नौ स्वरूप में कन्याओं को बुलाकर उनकी पूजा की जाने लगी।
कन्या पूजन के दौरान नौ कन्याओं के साथ एक बालक का होना भी अनिवार्य माना गया है। जहां कन्या देवी के स्वरूप में तो बालक को भैरव के रूप में पूजा जाता है। नौ कन्याओं को बुलावा भेज उन्हें आदर-सत्कार के साथ बैठाकर उनके पैर धोए जाते हैं। हाथों में मौली बांध टीका लगाया जाता है और प्रसाद के रूप में पूरी, खीर , उबले चने व फल आदि के रूप में भोजन कराया जाता है। भोजन के पश्चात उन्हें दक्षिणा के साथ उपहार प्रदान दिया जाता है।
भारतीय परम्परा में स्त्री हमेशा से पूजनीय रही है जिसकी झलक यहां के त्योहारों और परंपराओं में देखने को मिलती है। यह विडम्बना ही है कि जिस देश में स्त्री को पूजा जाता है उसी देश में कन्या (महिलायें) कई तरह के शोषण, अपमान और भ्रूण हत्या का शिकार भी होती हैं। स्त्री सम्मान केवल किसी त्योहार मात्र के दिन का सम्मान नहीं, बल्कि यह एक सतत निरन्तर सम्मान की बात है। यह बात हमारे जेहन और मस्तिष्क में हमेशा बनी रहे, इसलिये भी प्रतीकात्मक तौर पर कन्या पूजन परम्परा का हिस्सा है।
लेखक मूल रूप से अल्मोड़ा (उत्तराखंड) दन्यां गांव के निवासी हैं, एवं सीनियर एग्जेक्युटिव के तौर पर साएनर्जी इनवाईरॉनिक्स, गुरुग्राम में कार्यरत हैं