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कर्मयोगी मिशन योजना क्या आला अफसरशाही में से शाही को दरकिनार कर पायेगी?

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By G D Pandey

g5कर्मयोगी मिशन योजना संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित किए जाने वाले आला अफसरों को प्रद्योगिकी सक्षम बनाने तथा उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए भारत सरकार की इस क्षेत्र में आज तक की सबसे बड़ी योजना है। 2 सितम्बर 2020 को केन्द्रीय मंत्रीमंडल द्वारा इस योजना पर मुहर लगा दी गयी। मिशन कर्मयोगी का उद्देश्य व्यक्तिगत सिविल सेवकों की क्षमता निर्माण के साथ साथ संस्थागत क्षमता निर्माण पर ध्यान देना है। मिशन कर्मयोगी में सरकारी बाबुओं की कुशलता बढ़ाना योजना का प्रमुख लक्ष्य होगा। सूचना एवं प्रसारण केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने कहा कि मिशन कर्मयोगी का लक्ष्य भविष्य के लिए भारतीय सिविल सेवकों को अधिक रचनात्मक, कल्पनाशील, सक्रिय, पेशेवर, प्रगतिशील, ऊर्जावान सक्षम, पारदर्शी और प्रद्योगिकी सक्षम बनाकर तैयार करना है।  इससे यह जाहिर होता है कि मिशन कर्मयोगी योजना के द्वारा सरकार ब्यूरोक्रैसी में मूलभूत सुधार लाकर उसे 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप तैयार करना चाहती है ।  सरकार की नीति है मिनिमम गवर्नमैंण्ट मैक्सीमम गवर्ननैंस अर्थात न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन ।

दूसरे शब्दों में कम से कम सरकारी तंत्र से अधिक से अधिक शासन चलाने का काम लिया जाय । इस मिशन कर्मयोगी का यह भी एक पहलू है कि नौकरशाहों को शासन (रूल) नहीं करना है बल्कि शासन को चलाने में योगदान करना है। इसका तात्पर्य यह है कि आईएएस, आईपीएस, आईएफएस समेत तमाम बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुये आला अफसर सिर्फ आर्डर या रूल से ही काम नहीं चलायेंगे बल्कि स्वयं रचनात्मक कार्यों में योगदान करते हुये अपने मातहत अधिकारियों व कर्मचारियों को भी व्यवहारिक रूप में काम समझाएंगे।

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मिशन कर्मयोगी का ढांचा इस प्रकार बनाया गया है कि देशभर के दो करोड़ सरकारी अफसरों तथा बाबुओं को विश्व स्तरीय प्रशिक्षण के जरिए पब्लिक सर्विस डिलिवरी के लिए चुस्त दुरूस्त बनाया जा सके। कर्मयोगी मिशन की सबसे बड़ी और योजना बनाने वाली बाॅडी है -पब्लिक ह्यूमन रिसोर्स काउन्सिल (पीएचआरसी ) इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। यह एक एपैक्स बाडी के रूप में निर्णायक होगी। योजनायें बनाने में इस बाॅडी की सहायता करने तथा अन्य आवश्यक सुझाव देने हेतु कैपैसिटी बिल्डिंग कमीशन बनाया गया है। इसके जरिए अधिकारियों के घर पर ही अथवा उनके  कार्यस्थान पर ही आनलाइन ट्रेनिंग
की व्यवस्था की जायेगी। अधिकारी साझा प्रशिक्षण (शेयर्ड ट्रेनिंग) से स्वयं जिस क्षेत्र में जरूरत समझेंगे प्रशिक्षण ले पायेंगे। स्टडी मैटिरियल प्राप्त करने के लिए 431 रुपए प्रति अधिकारी वार्षिक वित्तीय चंदे के रूप में जमा करेगा।

मिशन कर्मयोगी की पूरी व्यवस्था के लिए ‘स्पेशल परपज वहिकिल’ नाम से एक संगठन होगा इसका काम डाटा मैनेजमैन्ट करना, समय समय पर निरीक्षण करना होगा। बौद्धिक सम्पदा का कापीराइट इसी संगठन के पास होगा। अर्थात इसकी अनुमति के बिना मिशन कर्मयोगी का कोई भी प्रबंधन कार्य अन्य कोई नहीं कर सकता। कर्मयोगी मिशन के कार्यों में तालमेल हेतु एक को-आडिनेशन यूनिट होगी, इस यूनिट के अध्यक्ष होंगे भारत सरकार कैबिनेट सेकैट्री।
ऊपर वर्णित के अतिरिक्त मिशन कर्मयोगी के सांगठनिक ढांचे में एक कामन ईको सिस्टम होगा। यह सभी छोटे बड़े अधिकारियों तथा सरकारी बाबुओं को ‘कामन स्टडी मैटीरियल’ तथा शेयर्ड ट्रेनिंग सुनिश्चित करायेगा।

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इसके तहत सभी मंत्रालय तथा डिपार्टमेंट अपने अपने रिसोर्सेस बतायेंगे। इसमें विश्व स्तरीय प्रशिक्षण के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ संस्थानों और प्रतिष्ठानों से विभिन्न विषयों में पारंगत विशेषज्ञों को आमंत्रित करके आवश्यक प्रशिक्षण भी उनके जरिए अधिकारियों को दिलवाया जायेगा। अर्थात शेयर्ड ट्रेनिंग की व्यवस्था की जायेगी। इस सिस्टम के अलावा एक प्लेटफार्म भी होगा जिसका नाम ‘आई गौट कर्मयोगी’ रखा गया है इसके तहत सभी अधिकारी स्वयं को  वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग से लाभांवित करने के लिए वर्क एसाइनमैण्ट पाप्त करेंगे स्वयं मूल्यांकन करेंगे और कार्य के जिस क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षण लेने की जरूरत महसूस होगी उसके लिए वे इस प्लेटफार्म के जरिए आनलाइन लाभान्वित हो पायेंगे।

कर्मयोगी मिशन योजना के तहत नीतिगत एवं ढांचागत व्यवस्थाओं के माध्यम से नौकरशाही में सुधार करने का यह तरीका विदेशी तरीकों की तर्ज पर तैयार किया गया है। वास्तव में भारत की ब्यूरोक्रैसी अभी पुराने ढर्रे पर चल रही थी और देश का शासन चलाने में शासक वर्ग को चला रही थी। यह ब्यूरौक्रैसी स्वयं भी शाही ठाट का आनंद ले रही थी। नौकर चाकर, कारें, बग्ले, स्टैंडिंग सैल्यूट और मंत्रियों तथा प्रधानमंत्री की हौट लाइन इत्यादि बड़े-बड़े आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस, तथा पीसीएस समेत मध्यम दर्जे के अन्य प्रशासनिक उच्च या वरिष्ठ अधिकारियों को उनके ओहदों के अनुसार उपलब्ध हैं। कई जगहों पर तो ऐसा लगता है मानो ब्यूरोक्रैसी ने ब्यूरो को दरकिनार करके सिर्फ क्रैसी (शाही) को प्रमुख रूप से अपने जीवन का अंग बना लिया है अर्थात वे कथनी में तो लोक सेवक हैं और करनी में उनकी लोकसेवा गौण रहती और शाही ठाट प्रमुख।

अब चूंकि इस कोरोना महामारी ने जीवन के हर क्षेत्र में पुराने परिदृश्य का पटाक्षेप  तथा नये परिदृश्य का प्रादुर्भाव होने के स्पष्ट संकेत नयी परीस्थितियों और विकट चुनौतियां सामने ला खड़ी कर दी हैं। परिणाम स्वरूप वैश्विक उथल- पुथल के इस दौर में शासन व्यवस्थाओं के विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव, सुधार तथा नवाचार का दौर चल पड़ा है।

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हमारे देश भारत में भी 21वीं सदी  की तमााम विकट चुनौतियों का सामना करने के लिए नये नारे नयी नीतियां तथा नयी योजनाओं की घोषणा की जा रही हैं जैसे आत्मनिर्भर भारत का नारा, वैश्विक समझौते, नई शिक्षानीति, राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी तथा मिशन कर्मयोगी इत्यादि घोषित हुये हैं। बदलाव ,सुधार और नवाचार जरूरी हैं बशर्ते कि उनका क्रियान्वयन देश हित तथा जनहित में समग्र रूप में लोकतांत्रिक तरीके से निष्ठापूर्वक किया जाय।

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय लोक सेवा में सुधार के लिए तैयार किया गया मिशन कर्मयोगी किस हद तक वर्तमान अफसरशाही को चुनौतीपूर्ण लोकसेवा वितरण (पब्लिक सर्विस डिलीवरी ) के लिए क्रियाशील तथा रचनात्मक बना पायेगा क्या ब्यूरौक्रैसी में से क्रैसी शब्द समाप्त होकर सिर्फ ब्यूरो ही रह जायेगा? क्या भारतीय लोक सेवक भविष्य के लिए पेशेवर प्रगतिशील प्रद्योगिकी सक्षम, पारदर्शी, कल्पनाशील, ऊर्जावन और सक्षम बनकर भारत के नागरिकों को विश्व स्तरीय लोकसेवक के रूप में सेवायें प्रदान कर पायेंगे ? उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सब साकार हो और तभी होगा जबकि देशहित और लोकहित को व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखकर कार्य किया जायेगा। मिशन कर्मयोगी एक आधुनिकतम एवं सुधारोन्मुखी योजना प्रतीत होती है। सिविल सेवा आकांक्षियों को इसका अध्ययन करना चाहिए।

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