उत्तरैणी पर्व पर सेराघाट में लगेगा दो दिवसीय मेला
अल्मोड़ा। देवभूमि उत्तराखण्ड में यूं तो हर एक-दो महीने में त्यौहार आते हैं जिन्हें बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ऐसा ही एक प्रमुख त्यौहार जो समूचे प्रदेश में धूम धाम के साथ मनाया जाता है वह है उत्तरैणी। मकर संक्रांत्रि को मनाया जाने वाला यह त्यौहार इस साल 15 जनवरी को मनाया जाएगा। कुमाऊं में इस त्यौहार को घुघुतिया त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। मकर संक्रात्रि के इस त्यौहार में प्रदेश के कई इलाको में मेले का आयोजन भी किया जाता है। मकर संक्रात्रि के दिन अल्मोड़ा जिले के सेराघाट में भी हर साल मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़, बागेश्वर के दूर दराज इलाकों से लोग यहां पहुंचते हैं।
मकर संक्रांति की मान्यताओं के बीच उत्तराखंड की उत्तरैणी-मकरैणी की भी बड़ी मान्यता है। प्रत्येक वर्ष 14-15 जनवरी की तारीख में जब मकर संक्रांति का संयोग होता है उसी समय उत्तराखंड में यह पर्व मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है, सूर्य के उत्तरायण होने के कारण स्थानीय भाषा में इसे उत्तरैणी और मकर राशि में प्रवेश करने से इसे मकरैणी कहा जाता है।
अल्मोडा-पिथौरागढ़ के सीमांत इलाके में स्थित सेराघाट बीड़ा महादेव मंदिर में प्रत्येक साल की तरह इस वर्ष भी पंद्रह व सोलह जनवरी को दो दिवसीय महाकौतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। समाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी ने बताया कि सेराघाट बीड़ा महादेव मंदिर में मकरसंक्रांति के के अलावा भी एक दिवसीय शिवरात्रि मेला और बैसाखी का एक दिवसीय दुतिया मेला भी इस महादेव मंदिर होता है।
बीड़ा महादेव मंदिर सरयू नदी व जगन नदी के बीच में बसा हुआ मंदिर है। ये बीड़ा महादेव मंदिर 160साल पुराना मंदिर है। यहां पर दो दीवसीय मकरसंक्रांति का मेला लगता है। कोरोना काल की वजह से पिछले दो सालों में मकरसंक्रांति पर लगने वाले इस मेले का आयोजन नहीं हो पाया था, लेकिन इस बार सेराघाट में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाएगा। मेले में बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने का अनुमान है साथ ही मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाएगा। मेले में स्थानीय लोग संतरे, अरबी, नीबू, गन्ने, दालों का भी व्यापार करते हैं। मेले में आने वाले लोग सेराघाट के गन्ने को बहुत पसंद करते हैं और अपने घरों को गन्ने की गठरियां खरीदकर ले जाते हैं जिसे लोकल भाषा में पौंठ रीखू भी कहा जाता है।