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जो सत्ता जनता की भाषा में कार्य नहीं करा पाए, वह मानसिक गुलाम और जनविरोधी : धामी

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  • भाषा आंदोलन के राष्ट्रीय सचिव का प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र
  • बोले, अपनी भाषाओं का सम्मान हो 

By Naveen Joshi

खटीमा। भाषा आंदोलन संगठन के राष्ट्रीय सचिव रवींद्र सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र भेजकर अपनी भाषा नीति में बदलाव कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को स्थान देने और भारतीय भाषाओं में केंद्रीय परीक्षाओं की व्यवस्था करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर भारतीय भाषा को उचित सम्मान नहीं दिलाया गया तो आंदोलन तेज किया जाएगा। 

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प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में धामी ने कहा है कि जिस देश की सत्ता अपनी भाषाओं का सम्मान और उन्हें महत्व एवं जनता की भाषा में कार्य नहीं कर सकती, उस देश की सत्ता मानसिक रूप से गुलाम और जनविरोधी ही कही जाएगी। क्योंकि वोट मांगने की भाषा अलग और राजकाज की भाषा विदेशी अलग। सरकारों द्वारा आजादी के इतने वर्ष बाद भी अंग्रेजीयत की जो अघोषित वकालत जारी है, वह भारतीय भाषाओं का अपमान है। उन्होंने कहा कि भाषा आंदोलन संगठन के प्रमुखों ने 13 मई 1994 को संघ लोकसेवा आयोग के समक्ष धरना दिया था, जिसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी अपना समर्थन दिया है। संगठन की प्रमुख मांगों में एक यह है कि संघ लोकसेवा आयोग की सभी परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में की जाए, इनमें अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाई जाए। भारत सरकार से मांग है कि तत्काल अपनी भाषा नीति में बदलाव कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को स्थान दें और भारतीय भाषाओं में केंद्रीय परीक्षाओं की व्यवस्था की जाए।

धामी ने कहा कि किसी देश की भाषा विदेशी है तो इसका सीधा अर्थ है कि वह देश अब भी मानसिक रूप से गुलाम है। हालांकि भारतीय भाषाओं की रक्षा के लिए संसद पूर्व में दो बार संकल्प ले चुकी है, राष्ट्रपति द्वारा इस बारे में आदेश जारी किए जा चुके हैं। देश की प्रमुख राजनैतिक दल पूर्व में संगठन की मांगों का समर्थन कर चुके हैं। इस मामले में वर्तमान सरकार को बिल्कुल भी देरी नहीं करनी चाहिए। अगर देरी होती है तो उनका संगठन एक बार फिर आंदोलन तेज करेगा

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