नई दिल्ली। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने स्वामी विवेकानन्द जयंती के अवसर पर मनाए गए राष्ट्रीय युवा दिवस पर कहा कि स्वामी विवेकानन्द राष्ट्र के अस्तित्व तथा गौरव भी हैं। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ऐसे दार्शनिक तथा समाज सुधारक थे जिन्होंने पहली बार ज्ञान और कर्म को समुच्चय रुप में परिभाषित करने का सार्थक प्रयास किया, जिसका बौद्धिक चिन्तन का दूरगामी समन्वयवादी परिणाम वाला निकला।
कुलपति ने कहा कि कर्म के बिना ज्ञान निष्फल होता है। स्वामी जी सच्चे अर्थों में क्रियाशील महामानव थे। प्रारंभ से ही भारतवर्ष एक अध्यात्मिक देशर हा है। लेकिन उपनिवेशवाद ने भारत को न केवल राजनैतिक या ऐतिहासिक दृष्टिकोण से गुलाम बनाया, बल्कि भारतीय शास्त्रीय ज्ञान परंपरा को नाकारात्मक दृष्टि से प्रभावित किया। अत: यह देश जिसमें दुनिया के सबसे अधिक युवा रहते हैं, आज के राष्ट्रीय युवा दिवस पर उन्हें इसका संकल्प करना चाहिए कि इन पर भारतीय दृष्टि से पुन: कैसे चिन्तन किया जाय। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए अध्यात्म अत्यावश्यक है।
इस अवसर पर जाने माने इंडोलौजिस्ट डा जेफरी आर्मस्ट्रांग ने अपने विशेष व्याख्यान में मूल गीता के ऑपनिवेशिक अंग्रेजी अनुवाद की समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अंग्रेजों ने संस्कृत को क्लोनाइज्ड कर के भारत पर हुकूमत किया और उनका अनुवाद भ्रामक भी है क्योंकि संस्कृत में जितने विपुल तथा समृद्ध शब्द भंडार हैं उनका समानार्थी शब्द अंग्रेजी में नहीं मिल सकता है।
ट्रस्टी एआईएनजीसीए तथा जाने माने कलाविद् और नाट्यशास्त्र के मर्मज्ञ प्रो भरत गुप्त ने मुख्वक्ता के रुप में स्वामी विवेकानन्द के दर्शन की चर्चा करते कहा कि स्वामी जी शिकागो में वेदान्त चिन्तन की मौलिकता रखी जिससे सारे यूरोप को फिर से भारतीय दर्शन पर ध्यान गया और जब वे भारत लौटते हैं तो सगुण तथा निर्गुण चिन्तनों में समन्वय बैठा कर समाज सुधार, शिक्षा तथा राष्ट्र निर्माण पर ध्यान देते हैं क्योंकि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की भी उन्हें चिंता है। इससे युवा वर्ग की सीख लेनी चाहिए।