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भारतीय संस्कृति व भाषाई अस्मिता के संघर्ष को फिर जुटे पुराने साथी, बोले-तैयारी शुरू

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रवींद्र सिंह धामी की फेसबुक वॉल से

भारतीय संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाओं के खिलाफ अंग्रेजियत के षड्यंत्र, अंग्रेजी की हर स्तर पर अनिवार्यता को खत्म करने, मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा व भारतीयता के संघर्ष भाषा आंदोलन के 1990 से 1999 तक अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के बैनर तले पूरे विपक्ष के नेताओं को पहली बार एकजुट करने वाली इस टीम के तीन देश भर के अपनों के अपने राजकरण सिंह, पुष्पेंद्र चौहान, रवींद्र सिंह धामी। तब यह तीनों एक साथ निकलते थे तो तब की खुफिया एजेंसियां अंदाजा नहीं लगा पाती थी कि यह क्या करेंगे।

तीनों की जोड़ी को तब भारतीयता समर्थक मीडिया के अपनों व राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता व कार्यकर्ता देखते तो..सभी को अपने से लगते और जब जब तिहाड़ जेल डाला हो या दबाने की कोशिश अपनों ने नई ताकत दी..आज इसलिए कि लंबे 20 साल में बहुत कुछ बदल गया..हमारी तिकड़ी में राजकरण सिंह जी आज हमारे बीच नहीं हैं उनको नमन..एक साथ संघर्ष में एक साथ आर यानी र नाम का पहला अक्षर के चलते आंदोलन में तो एक साथ ही रहते जेल भी जाते तो एक ही बैरक में रखा जाता।

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उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी में जब उनका निधन हुआ तो तब में दैनिक जागरण में उत्तराखंड के जिला ऊधमसिंहनगर के रुद्रपुर मुख्यालय का ब्यूरो इंचार्ज था और तभी रुद्रपुर में दंगा हुआ था। अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो पाया। उनको नमन.. उनके अधूरे संघर्ष को पूरा करने को फिर संघर्ष. उनकी कमी हमेशा..अब दो लोग पुष्पेंद्र चौहान जी से लॉकडॉउन के बीच बात तो बोले. संघर्ष नहीं रुकना चाहिए..फिर संगठन को खड़ा करो..फेसबुक से तब के अपने भी जुड़े हैं उनको भी उनके अपने तीन आंदोलनकारी साथी एक साथ नजर आते ही पुराने वह पल.

जब उनके पास समर्थन के लिए तीनों में से एक भी पहुंचता तो उनका अपनापन नई ऊर्जा..कोरोना से जंग में जीत के साथ ही एक बार फिर शेष संघर्ष के लिए आपके यह अपने आपके बीच होंगे..पूरी उम्मीद नए व पुराने हर क्षेत्र के अपनों का समर्थन ही नहीं एक बार फिर सक्रिय साथ मिलेगा…पहली बार देश के सभी प्रमुख दल, बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक संगठनों के भारतीय भाषाई अस्मिता के सवाल पर एक मंच यानी भाषा संगठन के बैनर पर लाने में सफलता मिली थी उसका असर भारतीयता ..अब निर्णायक संघर्ष जल्द..सभी अपनों से आग्रह कोरोना महामारी में सावधानी ही दवा आने तक बचाव..अभी अपने सावधानी बरतें और जल्द संघर्ष की तैयारी..सभी उम्र में बड़े अपनों को प्रणाम, हम उम्र को नमस्कार, उम्र में छोटों को स्नेह..आपका अपना भाषा आंदोलनकारी.
रवींद्र सिंह धामी, राष्ट्रीय सचिव, अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन, नई दिल्ली।

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