नई दिल्ली। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने स्वतन्त्रता सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयन्ती पर सभी देशवासियों, सीएसयू परिवार को बधाई देते हुए नेता जी को निर्भीक, सच्चा सपूत और देश के लिए प्रेरणा स्तम्भ बताया। उन्होंने कहा कि नेताजी की जयन्ती को पराक्रम दिवस के रुप में मनाने की बहुत ही अधिक प्रासंगिकता है।
उन्होंने कहा कि नेताजी ने विकट और विषम परिस्थितियों में भी भारत माता की स्वतंत्रता के लिए देश और देश के बाहर भी अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने के लिए बाध्य किया। उन्होंने पेशावर तथा अफगानिस्तान के रास्ते बर्लिन जाकर वर्मा में भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया ताकि जापानी सरकार से हाथ मिला कर अंग्रेजों से लोहा लिया जा सके। उनका यह साहसिक कदम आज भी वैश्विक कूटनैतिक दृष्टि से बड़ा ही ज्वलंत माना जा सकता है।
प्रो वरखेड़ी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी को सुभाषचन्द्र बोस अपना अध्यात्मिक गुरु मानते थे। यही कारण है कि उनका समग्र जीवन आत्मविश्वास तथा राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत था। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र के लिए न्योछावर कर दिया। नेताजी के जीवन पर भी भगवतगीता का भी प्रभाव सहज रुप में झलकता है। प्रो वरखेड़ी का यह भी मानना था कि जिसे संस्कृत भाषा आती है या जो इसके साहित्य को आत्मसात करता है, तो उसके जीवन में आशा और आत्मविश्वास स्वत: अधिक स्फूर्त हो उठती है। संभवत: भगवतगीता का ही उनके जीवन पर प्रभाव था कि उन्होंने राजनैतिक स्वतन्त्रता के साथ साथ मनुष्य मात्र की चतुर्दिक स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक समरसता, उत्थान तथा न्याय को महत्व दिया। उनकी जयन्ती पर युवा पीढ़ी को उनके भारत के स्वप्नों को साकार करने के लिए अपने आप को अर्पित करने का प्रण भी करना चाहिए।


