प्रताप सिंह नेगी
कुमाऊं मंडल का लोकपर्व हरेला इस साल 17 जुलाई को मनाया जाएगा। जिन गांवों में हरेला 11दिन में कटता है वहां हरेला कल शनिवार को बोया जाएगा और जहां हरेला दसवें दिन कटेगा वहां पर हरेला की बुवाई रविवार को की जाएगी। कुमाऊं में कहीं कहीं हरेला साल में तीन बार बोया जाता है। चैत्र मास, अश्विन मास और सावन में हरेला बोने की परम्परा रही है। चैत्र मास के पहले दिन बोया जाने वाला हरेला दशमी को काटा जाता है। आशिवन मांस के पहली नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला दशहराके दिन काटा जाता है। और श्रावण मास का हरेला श्रावण की संक्राति के दिन काटा जाता है। हरेला पर्व को पर्यावरण की दृष्टि से भी जोड़ा जा सकता है। इस दिन प्रत्येक घर के लोग वृक्षारोपण किया करते हैं, जो प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। बुजुर्गो को कहते सुना जा सकता है कि हरेला को लगाया गया पेड़ काफी अच्छा होता है।
हरेला का त्यौहार सम्पूर्ण कुमाऊं में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सावन मास भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना माना जाता है। इसलिए हरेले के इस पर्व को कहीं-कहीं काली के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं में हरेला पाऱंपरिक लोकप्रिय त्यौहार है। हिमाचल प्रदेश में इस दिन हरियाली पर्व के नाम से इसे मनाया जाता है।
हरेला के दिन लोग वृक्षारोपण करते हैं। बरसात में लगाए जाने वाले ये पेड़ पौधे आसानी से उगने लगते हैं। इस दिन लोग अपने घरों के पास या फिर जंगलों में छायादार और फलदार वृक्ष लगाते हैं। गांवों में हरेला के दिन पेड़ों की क़लम विधि से भी जोड़कर बड़ा किया जाता है जिसे लोकल भाषा में प्यून लगाना कहते हैं।
ऐसे की जाती है हरेला की बुआई
हरेला बुआई से एक दिन पूर्व साफ मिट्टी को छानकर धूप में भली भांति सुखाया जाता है। हरेला बोते समय पांच या सात अनाजों को बोया जाता है जिसे सत नाज या पंचनाज भी कहा जाता है। प्रत्येक परिवार में हरेला बोने के लिए दो टोकरियों की व्यवस्था कर उनमें मिट्टी डालकर हरेला बोया जाता है। सुबह नहा धोकर हरेला इन दो बर्तनों में बोया जाता है, जिसे घर के एक अंधेरे कोने में रखा जाता है। जिससे हरेला का रंग पीला होने लगता है। दस दिन तक रोज प्रात: उठकर हरेला में ताजा पानी भरा जाता है। नौवें दिन हरेला की गुडाई की जाती है। उस दिन हरेला की गुड़ाई करके हरेला की पूजा-अर्चना करके उसे रक्षा धागा बांधकर रखा जाता है। अगले दिन विधि विधान के साथ हरेला काटकर परिवार के सभी सदस्यों को आशीष वचनों के साथ पूजा जाता है। प्राय: परिवार का मुखिया परिवार के प्रत्येक सदस्य को आशीर्वाद देकर उसे हरेला पूजता है और घर परिवार के सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता है। घर के कुल देवताओं को भ्ीा हरेला चढ़ाकर पूजा की जाती है।