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संयुक्त राष्ट्र की पहल पर हर साल 20 नवंबर को बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित रखने व उनका जीवन बेहतर बनाने के लिए बाल दिवस मनाया जाता है।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस धरती पर जन्म लेने वाले हर नौनिहाल को स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा हासिल करने का अधिकार है। लेकिन आज के युग में भी पूरी दुनिया में करोड़ों बच्चों को समान अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। गरीबी बच्चों पर विशेष रूप से गंभीर प्रभाव डालती है। दुनिया भर में लगभग 20 प्रतिशत बच्चे अत्यधिक गरीबी में जीवन बिताते हैं। हर दिन उनके लिये रहने का खर्च 1.9 डॉलर से भी कम होता है। उनके परिजन उनके लिए बुनियादी चिकित्सा उपचार और आवश्यक पोषण प्रदान करने में सक्षम नहीं होते हैं। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में 5 साल से कम उम्र के 14.5 करोड़ बच्चे डिस्प्लेसिया से पीड़ित थे।
गौरतलब है कि बच्चों के हितों व अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए हर साल 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 17.5 करोड़ से अधिक बच्चे पूर्व-स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर पाए हैं। वे अपनी जिंदगी की शुरूआत से गंभीर रूप से असमानता का सामना करते हैं। यूनेस्को के मुताबिक दुनिया भर में प्राथमिक स्कूलों के लगभग 60 प्रतिशत बच्चों ने पढ़ने और बुनियादी अंकगणित सीखने से पहले ही स्कूल छोड़ दिए। लगातार हो रहे सशस्त्र संघर्षों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
25 करोड़ बच्चे सशस्त्र संघर्षों से प्रभावित देशों और क्षेत्रों में रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार सीरिया संघर्ष छिड़ने से 7 हजार से अधिक बच्चे हताहत हो चुके हैं। सोमालिया में बच्चे संकट से सबसे अधिक प्रभावित समूह बन चुके हैं। तमाम बच्च अपने अधिकारों के घोर उल्लंघन के शिकार हैं। पिछले साल 30 लाख से अधिक बच्चों ने स्कूल छोड़ दिए और हजारों बच्चे कुपोषित थे।
दुनिया भर में करोड़ों बच्चे सशस्त्र संघर्षों के कारण विस्थापित हुए हैं। इन बच्चों को शरणार्थी शिविरों और अन्य शरण वाले क्षेत्रों में बहुत असुरक्षित माहौल में रहना होता है।
बता दें कि वर्ष 1959 में संयुक्त राष्ट्र में बाल अधिकारों की घोषणा पारित हुई। इस घोषणा के मुताबिक बच्चों को सुरक्षा, शिक्षा, चिकित्सा-देखभाल, आवास और अच्छे पोषण का अधिकार है।
बाल अधिकारों की घोषणा में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि बच्चों को हिंसा से बचाने का अधिकार है। लेकिन हर साल लगभग 1 अरब बच्चे विभिन्न हिंसा का शिकार होते हैं।
संस्थानों, स्कूलों और परिवारों में बच्चों पर हिंसा का खतरा मौजूद है। एक ही उम्र वाले बच्चों के खिलाफ हिंसा समान रूप से गंभीर है। साथ ही साइबर अपराधों के मामलों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है। अपने लिंग, विकलांगता, गरीबी, राष्ट्रीयता या धार्मिक कारणों से बच्चों विशेषकर बालकों में हिंसा का खतरा बढ़ सकता है।
पूरी दुनिया में हर 5 मिनट में हिंसा के कारण एक बच्चे की मौत होती है। लगभग 2.8 करोड़ बच्चे सशस्त्र संघर्षों के कारण बेघर हो चुके हैं। हर साल लगभग 15 साल से कम उम्र के 4 करोड़ बच्चों को दुर्व्यवहार और उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, जबकि लगभग 12 लाख बच्चों को बहला-फुसला कर बेच दिया जाता है।
अगर बच्चों की रक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए, तो वर्ष 2030 तक 5 साल की आयु से पहले लगभग 5.2 करोड़ बच्चों की मृत्यु हो जाएगी, इनमें से अफ्रीका में बच्चों के मरने की संभावना उच्च आय वाले देशों की तुलना में 16 गुना अधिक होगी। अत्यधिक गरीबी में रहने वाले बच्चों में से लगभग 90 प्रतिशत अफ्रीकी देशों के होंगे। जबकि 6 करोड़ से अधिक स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चे स्कूल छोड़ देंगे। 15 करोड़ से अधिक लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाएगी।
भारी असमानता और खतरा बच्चों के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करता है और उनके भविष्य को खतरे में डालता है, साथ ही पीढ़ियों का प्रतिकूल चक्र और असमानता का चक्र हमेशा जारी रहेगा। इस तरह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सामाजिक स्थिरता और सभी देशों की सुरक्षा खतरे में रहेगी।
बच्चे हमारा भविष्य और उम्मीद होते हैं। बच्चों का उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को और ज्यादा प्रयास करने चाहिये।