Uttarakhand DIPR
sato athu

विरुड़ पंचमी के साथ ही गौरा-महेश के प्रतीक सातूं-आठूं पर्व का शुभारंभ

खबर शेयर करें

पंचमी के दिन ही पड़ रही है षष्टी

Report ring desk

अल्मोडा। कुमाऊं क्षेत्र मनाए जाने वाले सातूं-आठूं का पर्व आज विरुड़ पंचमी के साथ शुरू हो गया है। इस साल सातूं-आठूं के विरुड़ घर पर नहीं रह पाएंगे। यह अद्भुत संयोग सात साल बाद पड़ रहा है। इसका कारण विरुड़ पंचमी 23 अगस्त के दूसरे ही दिन 24 अगस्त को अमुक्ताभरण सप्तमी यानी सातूं का होना है। 25 अगस्त को आठूं का यानी दुर्वा अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। सामान्यतया विरुड़े पंचमी को भिगोने के बाद तीसरे दिन सप्तमी को पूजने के लिए ले जाए जाते थे। इस साल पंचमी के दिन ही षष्टी की तिथि होने के कारण यह हो रहा है।

भादो माह के शुक्लपक्ष की पंचमी से अष्टमी तक कुमाऊं में चार दिन गौरा-महेश्वर पर्व मनाया जाता है। गौरा यानी पार्वती का मायका हिमालय को बताया गया है, कुमाऊं और गढ़वाल के लोग पार्वती को अपनी बेटी की तरह मानते हैं। इसीलिए प्रत्येक वर्ष भाद्रपद सप्तमी और दुर्वाष्टमी के दिन दोनों का विवाह और फिर विदाई की जाती है। इसमें महिलाएं दो दिन तक उपवास रखती हैं। विदाई पर विरह गीत गाए जाते हैं। इस पर्व की आज विरूड पंचमी के साथ शुरू हो गई है। समापन आठूं यानी महेश्वर पूजन दुर्वा अष्टमी के दिन होता है। लेकिन सात साल बाद अद्भुत संयोग पड़ रहा है। विरुड़े भिगोने के दूसरे दिन ही गौरा को चढ़ा दिए जाएंगे। चना, गहत, मटर, गुरूंश और उरद इन पांच प्रकार के अनाजों को भिगाकर विरुड़ बनाए जाते हैं।

कुमाऊं के लगभग अधिकतर गांवों में गौरा-महेश्वर धान के खेतों में उगने वाली घास से बनाए जाते हैं और उन्हें विभिन्न परिधानों से सजाकर पहले दो दिन वैदिक विधिविधान से पूजा की जाती है और उत्सव मनाया जाता है। आठूं सातों उत्सव में झोड़ा, न्योली और भगनोला और स्थानीय लोकआधारित गीत गाए जाते हैं। विदाई का दिन भावुक कर देने वाला होता है। उस समय उसी के अनुरूप गीत गाए जाते हैं।

gadhi 2
Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top