By Suresh Agrawal, Kesinga, Odisha
यद्यपि, भारतीय प्रशासनिक सेवा की उपाधि से केसिंगा को पहली बार गौरवान्वित करने वाले अनुपम साहा को अपने गृह-ज़िले कालाहाण्डी में सेवा करने का मौक़ा तो अभी तक नहीं मिला, परन्तु वह जहाँ भी गये अपने सेवा कार्यों से उन्होंने न केवल अंचल का नाम रोशन किया, बल्कि वहां अपनी विशेष छाप भी छोड़ी है। किसी ने नहीं सोचा था कि एक सरल और शान्त सा दिखने वाला अनुपम अपने नाम के अनुरूप स्वयं को अनुपम साबित करेगा।
आईएएस अधिकारी अनुपम साहा का नाम गजपति के ज़िलाधीश बनने के बाद एकाएक तब सुर्ख़ियों में आया, जब उन्होंने अपनी प्रतिभा एवं ज्ञान-कौशल के ज़रिये सफलतापूर्वक चुनौतियों का सामना किया और स्थानीय लोगों में लोकप्रयिता हासिल की।

विशेषकर, ओड़िशा में आये भयंकर चक्रवाती तूफ़ान तितली एवं हाल की वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान अपनी जूझबूझ एवं अथक प्रयासों से उन्होंने यह साबित कर दिया कि -एक ज़िलाधीश चाहे तो क्या नहीं कर सकता। फिर बात चाहे तूफ़ान से विस्थापित लोगों के पुनर्वास की हो या कि कोविड-19 से निपटने की, अनुपम हर मोर्चे पर अडिग रहे। इसके साथ ही कोरोना के चरमकाल में भी उन्होंने विकास कार्यों की धारा को बाधित नहीं होने दिया। उन द्वारा गजपति ज़िले में चलाया गया चल कोरोना विषाणु परीक्षण अभियान काफी लोकप्रिय एवं कारगर साबित हुआ, जिसके तहत जनसंख्या बहुल क्षेत्र में स्वास्थ्य अधिकारियों को घर-घर जाकर नमूने संग्रह करने तैनात किया गया था।
कोविड-19 परीक्षण वाहन द्वारा नमूने संग्रहण के अलावा संक्रमण रोकने, पेयजल तथा चिकित्सकीय कूड़े को ठिकाने लगाने में भी मदद मिली। सामाजिक दूरी के मद्देनज़र वाहन में एकसाथ तीन लोगों के लिये स्थान की सुविधा थी।
उल्लेखनीय है कि उक्त वाहन की सहायता से गजपति ज़िले की तमाम 149 ग्राम पंचायतों के लोगों का कोरोना परीक्षण सम्भव हुआ। ज़िले को यह वाहन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एवं आईसीएमआर द्वारा उपलब्ध कराया गया था। इस चल परीक्षण वाहन से न केवल स्थानीय लोगों की स्क्रीनिंग की गयी, अपितु गजपति से जुड़े आंध्रप्रदेश के सीमान्त क्षेत्र में बड़ी तादाद में रहने वाले प्रवासी लोगों को भी इसका लाभ मिला।
ज़िलाधीश के प्रयासों को तब और अधिक सफलता मिली, जब महामारी से लड़ने वहां सरकारी सहायता से स्वास्थ्य सेवाओं का एक बड़ा ढ़ांचा खड़ा किया गया। तीन समर्पित अस्पतालों में 120 बिस्तरों वाले सेंच्यूरियन हेल्थ यूनिवर्सिटी (डीएचसी) कोविड अस्पताल, जिसमें कि 10 आईसीयू बेड भी शामिल हैं। इसके अलावा मोहना के कालियापड़ा में 60 बिस्तर तथा बेटागुड़ा में 72 बिस्तरों वाले अस्पताल का श्रेय भी अनुपम के खाते में जाता है।अनुपम के प्रयासों से यहां 520 बिस्तर विशिष्ट कोविड केयर सेण्टर तथा कुल 205 अस्थायी स्वास्थ्य शिविरों में 16836 बिस्तरों का प्रबन्ध भी सम्भव हुआ।
यह भी उनकी ही सूझबूझ का परिणाम है कि ज़िले में पुष्ट कोविड मरीजों की संख्या 4028 तक सिमट कर रह गयी और जिनमें से 3945 स्वस्थ होकर अपने घरों को भी लौट चुके हैं। इस प्रकार कोरोना से मृत्यु का आंकड़ा यहां कुल 32 रहा।
कोरोना महामारी काल में प्रवासी मज़दूरों की समस्या से निपटना भी उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी, जिसका भी उन्होंने बड़ी सूझबूझ और धैर्यपूर्वक सामना किया और सफलता हासिल की। आंकड़ों के अनुसार इस दरम्यान कुल 13074 श्रमिक अपने घरों को लौटे। अनुपम द्वारा एमजीएनआरईजीएस जैसी गतिविधियों के ज़रिये उनके लिये न केवल रोज़गार के अवसर पैदा किये गये, बल्कि आजीविका के साधन भी उपलब्ध कराये गये। उन्होंने लोगों के बीच जाने में कभी हिचक महसूस नहीं की।
बकौल अनुपम, तूफ़ान तितली उनके जीवन का सबसे बड़ा अनुभव था, जिसमें लोगों को भारी नुक़सान झेलना पड़ा था। उनके अनुसार मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के दिशानिर्देश पर प्रदेश के 5-टी सचिव वी.के.पाण्डियन तथा लोगों के सम्पूर्ण सहयोग के चलते ही वे इस आपदा से पार पा सके थे।

