किसी समाज की प्रगति के लिए समाज में बेटियोंं का काबिल होना जरूरी माना जाता है। यदि बेटियां काबिल होंगी तो आने वाली पीढ़ी भी बेहतर होगी। बेटियों को स्वस्थ वातावरण देने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सरकारें हमेशा कोशिशें करती भी हैं। इन्हीं कोशिशों का परिणाम है कि आज हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर आगे बढ़ रही हैं।
अब भी समाज में पित्तृसत्तात्मक व्यवस्था देखने को मिलती हो, इसी कारण कई बेटियों को बुनियादी अधिकारों और सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है। भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी कई कुरीतियों अब भी बालिकाओं को आगे बढऩे से रोक लेती हैं।
बालिकाओं के खिलाफ होने वाली इन कुरीतियों को खत्म करने और किशोरियों को समाज के प्रथम पायदान पर लाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। 2009 में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। तब से हर साल 24 जनवरी का दिन बालिकाओं के लिए समर्पित रहता है।

समाजसेवी प्रताप सिंह नेगी का मानना है कि बेटी बोझ नहीं सम्मान है। बेटी गीता और कुरान है बेटी घर की प्यारी सी मुस्कान हैं, बेटी मां बाप की जान हैं। बेटी होने से बाप को महादान यानी कन्यादान करने का अवसर मिलता है। बेटी ही किसी घर की बहू बनती है, बेटी ही किसी घर की मां बनती है, बेटी किसी घर की सास बनती है। इसलिए हर बेटी का स्थान एक मां के तौर देखना चाहिए। उनका कहना है कि हिन्दू धर्म के अनुसार जिस घर में बेटी और गाय होती है उस घर में कभी धन व लक्ष्मी की कमी नहीं होती है। कन्या व गैया का स्थान आज भी हमारे हिन्दू धर्म में सबसे सर्वोपरि है। किसी भी शुभ कार्य या पूजा अर्चना के समय सबसे पहले गाय व कन्या की जरूरत पड़ती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जिन लोगों ने अपने शुभ कार्य व अन्य देवी देवताओं की पूजा में कन्या व गैया को सम्मान दिया उस व्यक्ति के सारे बिगड़े और अधूरे काम सिद्ध हो जाते हैं।
नेगी का कहना है कि ग्रामीण व पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे पहले कोई भी शुभ कार्य या कोई देवी देवताओं की पूजा या कोई पित्र कार्य के समय गाय को गौगुरास और कन्या के पैरों को धोकर कन्या को भोजन खिलाने की परंपरा व कन्या को भेंट देने की परंपरा है। इसलिए कहा गया है जिस परिवार में बेटी और घर में गाय है उस परिवार में हमेशा शान्ति व लक्ष्मी का निवास होता है। लेकिन आधुनिक युग कन्या व गैया को उतना महत्व नहीं मिल पा रहा जिसकी वह हकदार हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस तो हम प्रतिवर्ष मनाते ओ रहे हैं लेकिन लड़कियों पर हो रहे अत्याचारों और दहेज़ प्रताडऩा जैसी कुप्रथाओं को रोक पाने में हम अब भी असफल हैं।

