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आठ साल बीतने के बावजूद शहीद मेजर कमलेश पांडे राजकीय पॉलिटेक्निक के पास अपना भवन नहीं

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Report ring Desk

अल्मोड़ा(बाड़ेछीना)। इसे सरकार की उदासीनता कहें या शासन-प्रशासन की अनदेखी। पहाड़ के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की हालत आज भी दयनीय है। पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए सरकार भले ही लाख कोशिश क्यों न कर ले, लेकिन जब तक ये दोनों चीजें ठीक नहीं हो जाती शायद पलायन को रोक पाना कठिन होगा। पहाड़ की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो आज भी लगता है कि अलग राज्य बनने के बावजूद पहाड़ के लोगों को इसका कोई फायदा नहीं मिल पाया। पहाड़ के हर स्कूल, अस्पताल का यही हाल है। विद्यालय में भवन है, बच्चे हैं तो वहां शिक्षक नहीं हैं। शिक्षक हैं तो वहां भवन नहीं है या फिर पढऩे वाले बच्चे ही नहीं हैं। अस्पताल हैं तो वहां डाक्टर नहीं हैं। डाक्टर हैं तो वहां भवन नहीं हैं या इलाज के लिए उपकरण नहीं हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है विकासखण्ड भैसियाछाना के बाड़ेछीना स्थित शहीद मेजर कमलेश पांडे राजकीय पॉलिटेक्निक कालेज का।

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बाड़ेछीना का शहीद मेजर कमलेश पांडे राजकीय पॉलिटेक्ïिनक कालेज को 8 साल बाद भी अपना भवन नसीब नहीं हो पाया। वर्ष 2014 में जब यहां पर राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थान की घोषणा हुई थी तो यहां के लोगों, विशेषकर विद्यार्थियों को काफी उम्मीद जगी थी कि अब वे अपने निकटतम संस्थान में पढ़ाई कर पाएंगे। लेकिन इतने साल बीतने के बावजूद यहां पर भवन तक नहीं बन पाया है। पॉलिटेक्निक कालेज के पास अपना भवन न होने के कारण इसे बाड़ेछीना इंटर कालेज के आवसीय भवन से संचालित किया जा रहा है।

रीठागाडी दगडिय़ों संघर्ष समिति के अध्यक्ष प्रताप सिंह नेगी ने बताया कि समिति द्धारा कई बार शासन-प्रशासन को इसके बारे में अवगत कराया गया लेकिन आज तक शासन-प्रशासन की ओर से राजकीय कमलेश पांडेपॉलिटेक्निक संस्थान के लिए भवन निर्माण कार्य के लिए कोई सुनवाई नहीं हुई। उनका कहना है कि बाड़ेछीना पेट्रोल पंप के पास इसके लिए जमीन भी चयनित की गई है और उसमें कुछ काम भी हुआ है, लेकिन इतने साल बीतने के बावजूद कालेज का भवन नहीं बन पाया है। कालेज में छात्र/छात्राओं के लिए आवासीय परिसर न होने के कारण दूर दराज से आए छात्रों को किराए में रहना पड़ता है। कालेज में अभी लगभग 130 बच्चे पढ़ाइ कर रहे हैं। लेकिन भवन और अन्य सुविधाएं न मिल पाने के कारण क्षेत्र के कई विद्यार्थियों को अल्मोड़ा या हल्द्वानी जाकर अपनी आगे की पढ़ाई करनी पड़ती है।

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धौलछीना में सामुदायिक स्वास्थ्य का बोर्ड तो है पर सुविधाएं नहीं

उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद वर्ष 2004 में भैसियाछाना ब्लाक के धौलछीना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने के लिए घोषणा हुई थी। धौलछीना अस्पताल में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए अलग-अलग डाक्टर, ओपीडीए, आपातकालीन, अन्य लैबोरेटरी के लिए कमरे तो बने हैं लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का उच्चीकरण व बिस्तरीकरण के प्रति शासन-प्रशासन की ओर से कोई सुनवाई नहीं हुई है। हालांकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नाम का बोर्ड और सभी कमरे तो तैयार किए गए हैं लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की तरह यहां पर सुविधाओं का अभाव है। रीठागाड क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्र के बड़े बुजुर्गो व गर्भवती महिलाओं को पांच से दस किलोमीटर दूर जंगल व पहाड़ी इलाकों के रास्ते डोली व खच्चरों के द्बारा धौलछीना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया जाता है। लेकिन धौलछीना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो एक्सरे मशीन है, न अल्ट्रासाउंड मशीन है और न जांच के अन्य उपकरण ही हैं। स्टॉफ भी पूरा नहीं है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का बोर्ड जरूर नजर आता है।

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