नई दिल्ली। आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध तथा स्व. रिगपा (एयूएस एंड एस आर) के गुणवत्ता में सुधार तथा लोकहित में भारतीय चिकित्सा के उन्नयन के लिए भारत सरकार के अधिनियम द्वारा स्थापित सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ इंडियन मेडिसिन के साथ देश का पहला बहुपरिसरी केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (सीएसयू) दिल्ली के बीच एक अकादमिक समझौता (एमओयू)करार किया गया है। इस समझौते को लेकर कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने खुशी जताते कहा है कि इस समझौते से सीएसयू के द्वारा देश की पारंपरिक चिकित्सा आयुर्वेद पद्धति को प्रमाणिक तथा सशक्त रुप से पुनस्र्थापना में बहुत ही बल मिलेगा। इसका बहुत बड़ा कारण यह भी है कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत शास्त्र तथा इस भाषा के प्रचार प्रसार के लिए भारत सरकार का नोडल निकाय है तथा आयुर्वेद के मूल ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गये हैं ।
मालूम हो कि आज विश्व की दृष्टि न केवल संस्कृत अपितु आयुर्वेद पर भी टिकी है। वैश्विक महामारी कोरोना के समय दुनिया ने फिर से आयुर्वेद विद्या के महत्व को समझ सकी है। अत: समय आ गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अन्तर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा को एनसीआईएसएम के साथ कदम मिला कर आयुर्वेद विशेष कर आयुर्वेद बायोलॉजी में नवोन्मेषी अभिनव अनुसंधान देश-दुनिया के जनमानस के हित में किया जाय।

एनसीआईएसएम के सचिव इस करार को संस्कृत आयुर्वेद विज्ञान के त्रिकोणात्मक समन्वित शोध की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल बताया तथा सीएसयू के कुलसचिव प्रो रणजित कुमार बर्मन ने कहा कि यह कदम समय की मांग है। यह समझौता 10 अकादमिक सत्रों के लिए किया गया है जिसका उद्देश्य दोनों संस्थानों के बीच समन्वित संसाधनों तथा चिन्तनों को भारतीय शिक्षा पद्धति के प्रचार प्रसार विशेष कर संस्कृत में निहित ज्ञान परक आयामों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनुसंधान करना है। इसके लिए नये पाठ्यक्रमों के प्रारुपों को तैयार करने के साथ-साथ ई-कौन्टेंट निर्माण, प्रशिक्षण, संगोठी तथा सम्मेलनों आदि को भी आयोजित किया जाना है, ताकि बुनियादी तथा और प्रमाणिक स्तर पर शोधकार्य लोकहित के डोमेन में पहुंच सके।

