अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के राष्ट्रीय सचिव धामी ने किया नई शिक्षा नीति का स्वागत
बोले, लाॅकडाउन के बाद इस मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाएंगे
खटीमा। भाषाई अस्मिता के लिए संघर्षरत अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के राष्ट्रीय सचिव रवींद्र सिंह धामी ने कहा कि हिंदी भाषा को लेकर लड़ी गई लड़ाई के फलस्वरूप आज शिक्षा नीति में बदलाव देखकर बहुत खुशी हुई है। देर से ही सही मोदी सरकार ने शिक्षा नीति को लेकर आज जो फैसला लिया है वह स्वागत योग्य है। उन्होंने यूपीएससी समेत सभी परीक्षाओं में भी अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर राष्ट्र भाषा हिंदी समेत भारतीय भाषा लागू की करने की मांग की।
नई शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए अंग्रेजी की अनिवार्यता हर स्तर पर समाप्त कर मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए संघर्षरत रवींद्र सिंह धामी ने कहा कि भाषा आंदोलन में शामिल उनकी मांगों में मैकाले की शिक्षा व्यवस्था को बदलकर मातृभाषा में शिक्षा देने की मांग भी थी, जो आज मोदी सरकार ने पूरी की है। मैकाले की शिक्षा नीति को बदलने की अब तक कोई हिम्मत नहीं जुटा पाया।
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धामी ने कहा कि मैकाले की शिक्षा नीति देश से भारतीय सनातन संस्कृति को धीरे-धीरे खत्म कर रही थी, क्योंकि मैकाले ने भारत में अंग्रेजीयत की शिक्षा नीति लागू की थी। उन्होंने कहा कि बच्चों का बौद्धिक और मानसिक विकास मातृभाषा में ही बेहतर होता है। लिहाजा, मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा होने से इसके सार्थक नतीजे बहुत जल्द सामने आएंगे। साथ ही भारतीय संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाओं को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने बताया कि गांधीजी ने भी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की जरूरत बताई थी।
90 के दशक में हुए भाषा आंदोलन के बाबत धामी ने कहा कि अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के बैनर तले 12 मई 1994 को अपनी मातृ भाषा के लिए दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग के समक्ष ऐतिहासिक धरना दिया था, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, अटल विहारी वाजयेपी, उप प्रधानमंत्री देवीलाल आदि समेत कई नेता, संपादक और साहित्यकार शामिल हुए थे। इस दौरान आंदोलनकारी कई बार गिरफ्तार हुए और तिहाड़ जेल तक गए, लेकिन कदम पीछे नहीं हटाए, नतीजतन अंग्रेजीयत बेनकाब हुई और भारतीय भाषा को बढ़ावा मिला।
उन्होंने कहा कि 90 के दशक में अंग्रेजीयत के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन में शामिल रही शक्तियों के आगे आने के बाद ही मातृभाषा को लेकर ही इस पर विचार मंथन तेज हुआ। उन्होंने मांग की कि जिस तरह नई शिक्षा नीति बनाई गई है, उसी तरह यूपीएससी समेत सभी परीक्षाओं में भी हिंदी समेत भारतीय भाषाएं लागू की जाए।
उन्होंने मोदी सरकार और भाषा आंदोलन के समर्थकों से आग्रह किया कि यूपीएससी समेत सभी परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त करने की पहल करें। आम आदमी की सोच की तरह अगर आम आदमी के लिए नीतियां बनेंगी तो भारत विश्व गुरु पुनः बनेगा। उन्होंने कहा कि जल्द ही यूपीएससी समेत अन्य परीक्षाओं में भी अंग्रेजीयत का वर्चस्व खत्म करने के लिए लाॅकडाउन के बाद दिल्ली में सरकार के समक्ष मामला उठाया जाएगा।
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