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केसिंगा में प्रस्तावित एमएसएमई पार्क बनेगा या फिर छलावा

By Suresh Agrawal, Kesinga, Odisha

suresh agrawal 2ओड़िशा प्रदेश गठन के बाद यहाँ सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की क्यों न बनीं होंए पश्चिमी ओड़िशा विशेषकर, कालाहाण्डी के विकास पर किसी ने समुचित ध्यान नहीं दियाए अपितु हमेशा इसके साथ छल ही किया गया है। बहुमुखी इन्द्रावती जल विद्युत परियोजना को छोड़ ज़िले में ऐसी कोई योजना नहीं, जिसे सफल कहा जाये।

यहाँ सरकार द्वारा घोषित योजनाएं किस प्रकार काम करती हैं, उसका एक बेहतरीन उदाहरण सन 1984 में प्रस्तावित जेके पेपर मिल एवं कोणार्क स्पीनिंग मिल को लेकर दिया जा सकता है। पेपर मिल का काम तो शिलान्यास तक ही सीमित रहा, जबकि स्पीनिंग मिल पर शुरुआत में पन्द्रह करोड़ ख़र्च कर उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया, जिसका इमारती ढ़ांचा अब खण्डहर में तब्दील हो चुका है। स्मरणीय है कि दोनों ही योजनाओं का शिलान्यास सन 1984 में तत्कालीन लोकप्रिय मुख्यमंत्री जानकी वल्लभ पटनायक के हाथों हुआ था। सबसे दुःखद पहलू तो यह है कि यहां योजनाओं का या तो आगाज़ ही नहीं होता, यदि होता भी है, तो वे अंज़ाम तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं।

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ज्ञातव्य है कि केसिंगा स्थित क़ुर्लुपड़ा में सन 1983 में पेपर मिल हेतु किसानों से भूमि अधिग्रहण करते समय काम पूरा होने पर किसान परिवार के सदस्यों को मिल में नौकरी देने का आश्वासन भी दिया गया था। इस बात को चार दशक होने को आये, परन्तु बात शिलान्यास से आगे नहीं बढ़ी।
वर्तमान में सरकार द्वारा शगूफा छोड़ा गया है कि पेपर मिल वाली ज़मीन पर एक क्षुद्र, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) पार्क खड़ा किया जायेगा। कहने को दो करोड़ की लागत से उक्त भूमि पर बाड़ लगाने का काम शुरू भी हो गया है, परन्तु इसके साथ ही पेपर मिल के लिये ज़मीन देने किसानों का विरोध भी शुरू हो गया है। एकबार तो किसानों द्वारा बाड़ का काम रुकवा दिये जाने के कारण यहां तनाव की स्थिति भी निर्मित हो गयी थी।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1983 में पेपर मिल हेतु 150 किसानों की 180 एकड़ कृषि-भूमि कौड़ियों के भाव ख़रीदी गयी, तो उनके परिवार के सदस्यों को मिल बनने पर नौकरी का भरोसा भी दिलाया गया था, परन्तु सब व्यर्थ। पेपर मिल द्वारा पहले तो चौदह वर्षों तक झूठे आश्वासनों के साथ ख़ूब छकाया गया और फिर वर्ष 1994-1995 में एक दिन बहुत ही गुपचुप तरीक़े से किसानों से हथियायी गयी ज़मीन इड्को के हाथों बेच दी गयी। इस बात का पता भी तब चला, जब इड्को द्वारा ज़मीन पर अपने औद्योगिक क्षेत्र का बोर्ड लगा दिया गया।

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इसके बाद किसानों की याचिका पर मामला न्यायालय पहुँच गया एवं उन्होंने भवानीपटना स्थित सिविल कोर्ट से अपनी ज़मीन लौटाये जाने की गुहार लगायी। न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद इड्को द्वारा ज़मीन के एवज़ में भूमि की गुणवत्ता के आधार पर दस से पन्द्रह हज़ार प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों को मुआवजा दिया गया।

इस बीच वर्ष 2007-08 में इड्को औद्योगिक क्षेत्र की उक्त 180 एकड़ भूमि में से 12 एकड़ भूमि स्थानीय नगरपालिका द्वारा पट्टे पर लेकर उस पर एक बस स्टैण्ड का निर्माण कराया गया। परन्तु दूरदृष्टि के अभाव में करोड़ों की लागत से बना बस स्टैण्ड भी अब तक उपयोग में नहीं लाया जा सका है और उसमें भी क्षरण शुरू हो गया है।

प्रश्न उठता है कि जब कुछ बनाना ही नहीं था तो किसानों को उनकी कृषि-भूमि से बेदख़ल ही क्यों किया गया। जानकारों के अनुसार एमएसएमई के तहत प्रस्तावित फ़ूड-पार्क बनता भी है, तो उससे इड्को को तो करोड़ों का लाभ होगा, परन्तु यह कौन सुनिश्चित करेगा कि जिनकी ज़मीनें छिनी हैं, उन किसान परिवार सदस्यों को नौकरी मिलेगी ही ?

यहाँ यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण होगा कि वर्तमान में ओड़िशा शासन में एमएसएमई मंत्री कैप्टन दिव्यशंकर मिश्र स्वयं इसी कालाहाण्डी माटी से सम्बन्ध रखते हैं, अतः लोगों को उम्मीद है कि वह उनकी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे, परन्तु यह तो आने वाला समय ही बतलायेगा कि -राजनेता अपने वादे पर कितना अमल करते हैं।

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