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नई दिल्ली। दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में रामकथा वाचक संत मोरारी बापू की 867वीं रामकथा ‘मानस साधु महिमा’ का आयोजन किया जा रहा है जिसका मंगलवार को चौथा दिन था। रामकथा कार्यक्रम 21 नवंबर तक चलेगा।
संत मुरारी बापू ने व्यास जी साधु की महिमा बताते हुए कहा कि साधु का सत्व स्वभाव उसका उदासीन होना है। साधु तटस्थ नहीं होता। साधु मध्यस्थ भी नहीं होता। वह सत्यस्थ होता है। साधु सभी आश्रम को समन्वित कर यह संदेश देता है कि उदासीन बनकर रहना है। उदासीन वह होता है जिसको कोई भी घटना व्यथा न दे पाए। व्यथा मुक्त हो गया हो। साधु प्रेमस्थ होता है। मानस कथा में गाइए, झूमिए, लेकिन मर्यादा बनाकर रखिए।
बापू के अनुसार बुद्ध ने कहा है कि भक्ति में नृत्य और संगीत से विरिक्त होनी चाहिए। मैं तो कहता हूं कि भक्ति में नाचना चाहिए, गाना चाहिए। आनंद मनाना चाहिए। भक्ति का रस लेना चाहिए। उन्होंने एक वृतांत सुनाते हुए कहा, अमरदास जी बापू यात्रा करते हुए श्लोक बोलते थे। वह कहते हैं कि वह मंत्र बोलकर याद करेंगे तो कोई विघ्न नहीं आएगा। एक बार उनकी गाड़ी का एक्सिडेंट हुआ, पेड़ से गाड़ी टकरा गई। बाल बाल बचे। मैंने उनसे पूछा कि आप तो मंत्र बोलकर यात्रा करते थे तो आपका एक्सिडेंट कैसे हुआ। वह बोले, जल्दी जल्दी में मैं आज वह मंत्र जपना भूल गया और जब याद आया, तब तक तो गाड़ी टकरा गई थी।
मुरारी बापू ने कहा कि पूर्णावतार तो कोई-कोई होता है, बाकी दशावतार होते हैं। लोहे का रंग पूर्ण रूप से काला होता है। लेकिन अगर उसमें अग्नि प्रवेश कर जाए तो लोहा रंग बदल देता है। लोहा अग्नि के आवेश से रंग बदलता है, लेकिन जो आरोपी है, वह कब तक टिकेगा, कभी न कभी तो दोष सामने आएगा। जैसे अग्नि कुछ समय के बाद अपना स्वभाव त्याग देती है। लोहा मूल रूप में आ जाता है। अवतारी पुरुष में कलाएं होती हैं। पूर्णावतार तो भगवान श्रीकृष्ण है, राम हैं। अभिषेक अजन्मे का ही होता है। शरीरधारी का अभिषेक नहीं होता। दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा है कि रुद्राभिषेक तो केवल मेरे महादेव का होता है।