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सामासिक संस्कृति (Composite Culture) की संवाहिका हिंदी रहेगी डिजिटल संस्कृति की सहयात्री

By G D Pandey

g5प्रतिवर्ष 1, सितम्बर से 14 सितम्बर तक देश भर में स्थित केन्द्र सरकार के सभी कार्यालयों में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है। इसका उद्देश्य प्रारम्भ में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग को सभी केन्द्रीय कार्यालयों में सुनिश्चित करते हुए आगे बढ़ाना था क्योंकि हिन्दी को हमारे संविधान में संघ की राजभाषा का दर्जा मिला हुआ है। वर्तमान समय में यह एक औपचारिक परम्परा सी बन गयी है। अनेक कार्यालय राजभाषा में कार्य करने के शत प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं और अब ऐसे कार्यालय शत प्रतिशत की प्रतिबद्धता को बनाये रखने के लिए राजभाषा नीति के अन्र्तगत इस परम्परा को बदस्तूर जारी रखे हुए हैं परन्तु कुछ कार्यालय कागजी -आकड़ों की खानपूर्ति करने तथा उपलब्ध फंड का इस्तेमाल करने के उदेश्य से इस परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं।

ऐसे कार्यालयों में मुख्य कार्य अंग्रेजी भाषा में ही निष्पादित किया जाता है। देश की राज्य सरकारों के कार्यालयों में क्षेत्रीय भाषा अथवा अंग्रजी में ही सारा कार्यालयी कार्य किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिन्दी पूरे भारतवर्ष में, कुछ अपवादों को छोड़कर, आम जनता के समझ में आती है और काम चलाऊ रूप में गैर हिन्दी भाषी राज्यों में भी बोली जाती है। हिन्दी फिल्मों, दूरदर्शन के कार्यक्रमों, धारावाहिकों , समाचारों तथा रेडियो के अनेकों कार्यक्रमों को पूरे देश में जन साधारण द्वारा देखा, सुना और समझा जाता है, यह हिन्दी भाषा की अन्तर्निहित विशेषता है कि वह भारत भूमि के कण-कण और तृण- तृण में बसी हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चहिए कि हिन्दी भाषा में भारत की विविधापूर्ण संस्कृतियों को साथ लेकर चलने और माॅ भारती की पराधीनता से लेकर स्वाधीनता तक के सभी चरणों में भारतीय जनमानस के स्वरों को मुखर करने की अतुलनीय भूमिका चरितार्थ की है।

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उर्दू समेत कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का सानिध्य भी हिन्दी भाषा के इतिहास में मिलता रहा है। भारत की सामासिक संस्कृति के विकास के साथ -साथ हिन्दी भाषा इसे आगे बढ़ाने का काम एक संवाहिका की तरह कर रही है। इन्ही अर्थों में यह भारत की सामासिक संस्कृति की संवाहिका होने के साथ-साथ भारत की अस्मिता का प्रतीक है।

भारत के भाषा विदों के अलावा दुनिया की अन्य भाषाओं के द्विवान भी इस तथ्य को सहर्ष स्वीकारते हैं कि हिन्दी भाषा एक पूर्णरूपेण विकसित, परिमार्जित एवं विकासोन्मुखी भाषा है। इसका व्याकरण ठोस , सुसंगत एवं सुव्यवस्थित है। हिन्दी साहित्य समृद्ध, सशक्त एवं सारगर्भित होने के कारण विश्व में ख्याति प्राप्त करने में भी अग्रणी रही है। आध्यात्मवादी, सामाजिक सुधारवादी, भक्तिवादी, प्रकृतिवादी और हास्य व्यंगवादी विभिन्न साहित्यिक विधाओं से लेकर भौतिकवादी, राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी विचारों से ओत-प्रोत साहित्यिक विधाओं तक के जन साधारण के मन मस्तिष्क में घर कराने और उन्हें उनके पसंदीदा मतावलंबी बनाने में हिन्दी भाषा साहित्य श्रेष्ठतम गुणवत्ता का परिचय देते आया है।

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विदेशों में हिंदी भाषा का खूब प्रचार प्रसार भी होता आया है। विदेशी अनुवादकों ने विदेशी भाषा में मौजूद उनके साहित्य की असंख्य पुस्तकों को हिन्दी भाषा में अनुवादित किया है, उन्होंने न केवल शाब्दिक अनुवाद किया है, बल्कि भावार्थ को सहज और वोधगम्य बनाया है। मास्को से प्रकाशित, रूस में अनुवादित, मार्क्सवादी लेनिनवादी विचारधारा की दार्शनिक, आर्थिक तथा राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेेत्रों में उपलब्ध विभिन्न पुस्तकों का हिन्दी भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया है। वह वास्तव में पठनीय एवं मार्मिक है। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि हिन्दी भाषा एक क्षेत्र अथवा संप्रदाय विशेष की नहीं है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन सभी धर्मों के लोग हिन्दी भाषा से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। देश के सभी नागरिक कहते है, ‘हिन्दी है , हम वतन हैं , हिंदुस्तां हमारा’।

इन्ही सब गुणों के कारण कुछ हिन्दी भाषा के विद्वान कहते हैं कि हिन्दी पूरे देश में अनिवार्य रूप से लागू की जानी चाहिए, अंग्रेजीयत पूर्ण रूप से हटनी चाहिए, एक राष्ट्र एक भाषा होनी चाहिए, जो हिन्दी को स्वीकार नहीं करते उनसे जबरन स्वीकार करवाया जाना चाहिए, इत्यादि इत्यादि । इस तरह के विचार भाषाई तानाशाही की ओर संकेत करते हैं। लोकतंत्र में तनाशाही के लिए कोई स्थान नहीं है और ना ही होना चाहिए।

तनाशाही चाहे किसी भी भाषा की हो, चाहे साम्प्रदायिक हो, चाहे राजनीतिक हो, आर्थिक हो, सामाजिक अथवा सांस्कृतिक हो या धार्मिक हो किसी भी तरह की तानाशाही अथवा फासीवाद स्वीकार्य नहीं है। इसलिए हिन्दी अथवा अंग्रजी का जबरन थोपना या उसकी तानाशाही कायम करने संबंधी विचार जनवादी विचारों के विपरीत है और जनतंत्र में सभी को खासकर बहुसंख्यक जन साधारण को साथ लेकर, उनकी भाषा, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को विकसित करने का अवसर सुनिचित किया जाता है। हमारे संविधान में विशेषकर राजभाषा अधिनियम 1963 के अंतर्गत किसी गैर-हिन्दी भाषी राज्य पर हिन्दी को जबरदस्ती लादने का कोई प्रावधान नहीं है।

दरअसल, सर्व स्वीकार्यता इस बात में निहीत है कि हिन्दी भाषी राज्य गैर हिंदी भाषी राज्यों की भाषाओं को सहर्ष सीखने का प्रयास करें और गैर हिंदी भाषी राज्य हिन्दी भाषा को सहर्ष सीखने का प्रयास करें । शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र का पहले से ही प्रावधान तो है मगर लागू नहीं हुआ। सन 1968 में हमारी संसद ने राजभाषा संकल्प पारित किया था जिसके अंतर्गत त्रिभाषा सूत्र को लागू करने की बात कही गयी थी जिसमें दक्षिण भारत की चार भाषाओं – तमिल, तेलगू, कन्नड़ और मलयालम में से जिसे जो सुविधाजनक लगे उसे उत्तर भारत में हिंदी और अंग्रेजी के साथ तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना था ।

परंतु हमारे संविधान में लिखित में अथवा प्रावधानों में जो व्यवस्थाएं दर्ज की जाती हैं उनमें से अधिकांश तो लागू ही नहीं होती। यह लोकतंत्र की बहुत बड़ी विडंबना है। राजभाषा के संदर्भ में यह बात कही जा सकती है कि नियम तथा समितियों की टिप्पणियों व सिफारिशों पर वास्तविक तथा तथ्यपरक कार्यवाही कम और आंकड़ों का खेल ज्यादा होता है। इन सबके चलते हिंदी सामासिक संस्कृति की संवाहिका है, इसमें कोई दो राय नहीं है।

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पिछले कुछ वर्षों से हिंदी भाषा डिजिटलीकरण के दौर में भी अपनी भूमिका को नये आयाम देती आ रही है। अब तो भारत में डिजिटल संस्कृति विकसित हो रही है और हिंदी इस नई संस्कृति की सहयात्री बनकर आगे बढ़ रही है। केन्द्रीय कार्यालयों में कंप्यूटर द्वारा हिंदी टंकण काफी समय से चल रहा है, हिंदी में भेजी जाने वाली सारी रिपोर्ट्स कंप्यूटरीकृत रूप में भेजी जाती हैं, सारी ई-मेल हिंदी भाषा में भेजी जाती हैं। केंद्रीय कार्यालयों में भारत सरकार की सभी वेबसाइट द्विभाषी (हिंदी और अंग्रेजी) हैं। डिजिटलीकृत भारत का राजपत्र हिंदी में भी उपलब्ध है। भारत सरकार गृह मंत्रालय के आदेशानुसार अंग्रेजी में होने वाला सारा सरकारी डिजिटल कार्य हिंदी भाषा में भी किया जाना आवश्यक है। सबसे अच्छी बात हिंदी के लिए यह है कि गूगल सर्च इंजन ने हिंदी को डिजिटल दुनिया में कारगर सिद्ध कर दिया है। बड़ी-बड़ी हिन्दी साहित्य की पुस्तकें, उपन्यास, पौराणिक ग्रन्थ, समाचार पत्र, न्यूज पोर्टल इत्यादि हिन्दी में आनलाइन उपलब्ध हैं।

भारत में जन साधारण के रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले दस्तावेज डिजिटलीकृत रूप में हिंदी भाषा में उपलब्ध हैं। आधार कार्ड, पैन कार्ड ,वोटर आईडी, पासपोर्ट , राशन कार्ड, पेटीएम, नेट बैंकिंग इत्यादि को प्राप्त करने की प्रक्रिया से लेकर इनमें संशोधन के लिए आवश्यक आवेदन आनलाइन हिंदी में भी किया जा रहा है। फेस-बुक , यू ट्यूब, ह्वाट्सएप एवं ट्विटर हैंडल तथा इन्टाग्राम पर हिंदी में विडियोज, विचार, मैसेज तथा अन्य पोस्ट इतियादि इन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में छाए रहते हैं। किसान शौर्य, भीम एप तथा कोरोना कोल में आरोग्यसेतु एप भारत में जन सामान्य तक हिंदी में पहुंच चुके हैं। हिंदी कार्यशालाएं तथा अन्य बैठक – वर्चुअल रूप में इस कालखंड में विडियो कान्फ्रेंसिंग से चलाई जा रही हैं। अत हिंदी इस डिजिटल संस्कृति की सहयात्री बनकर बराबर आगे बढ़ रही है।

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